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मीडिया को देश का चौथा स्तम्भ कहा गया है | मीडिया नहीं तो सूचना - समाचार का आदान प्रदान देश - दुनियां तक नहीं पहुँच सकता है | इसलिए किसी भी जानकरी को सार्वजनिक करने का जिम्मा मीडिया उठाता है | ऐसी जानकारी जिसे लेकर लोग लम्बी उड़ान भी भरते है और ऐसी जानकारी जिससे लोग आहत भी होते है |
क्यूंकि देश की गति यहाँ के लोगों का उतार - चढ़ाव उनकी अच्छाई और उनका बहशीपन ये सभी बातों को मीडिया - नाम , पता सहित दर्शाने के ख्याल से प्रकाशित कर देती है या फिर इसका प्रसारण | जिससे कि गलत करने वाले और जिसके साथ कुछ गलत हुआ हो उसे ऑन द स्पॉट समाज के सामने खड़ा कर देने का काम मीडिया करता रहा है |
बॉम्बे हाई कोर्ट ने वर्क प्लेस सेक्सुअल हरासमेंट से जुड़े मामले को सार्वजनिक करने पर अंकुश लगाया है | कोर्ट ने मीडिया रिपोर्टिंग के लिए निर्देश जारी किया है कि - वे सेक्सुअल हरासमेंट के दौरान संस्थान का नाम प्रकाशित और प्रसारित नहीं करे | कुछ मीडिया अक्सर उस घटना को बढ़ा चढ़ाकर दुनियां तक पहुंचा देती है , जो कि दोनों के अधिकारों का हनन है |
सूचना के आधार पर यह बात हाई कोर्ट के जस्टिस गौतम पटेल ने कहा कि - दिए गए आदेश भी सार्वजनिक या अपलोड नहीं किये जा सकते है | अब आर्डर की कॉपी में पार्टियों की पहचान भी , जो व्यक्तिगत होता है इसका भी उल्लेख नहीं किये जाने का निर्देश देते हुए कहा कि - अब कोई भी आदेश खुली आदालत में नहीं की जायेगी | बल्कि न्यायधीश के कक्ष में या इन कैमरा दिया जा सकेगा | अगर इस आदेश का किसी के द्वारा या मीडिया के द्वारा सार्वजनिक किया गया तो इसे न्यायलय के आदेश का उलंघन माना जाएगा |
आदालत ने कहा है कि - कोई भी पक्ष , उनके वकील या गवाह इस बात को किसी भी तरह मीडिया के टेबल पर न दे | अदालत केवल अधिवक्ता और वादियो को सुनवाई में हिस्सा लेने की अनुमति देता है | साथ हीं सपोर्ट स्टाफ के तौर पर क्लर्क , चपरासी आदि को रहने की स्वीकृति दी जायेगी |
आदालत ने फाइल में सार्वजिक नाम , पता , घटना , मोबाइल नंबर , इमेल id ऐसे कोई भी पहचान पत्र फाइल में दर्ज या संलग्न करने पर रोक लगाते हुए आदेश में A बनाम B" P बनाम D" तर्ज पर लिखा और पढ़ा जाएगा | यहाँ तक कि गवाहों का नाम / पता भी सार्वजनिक नहीं करने का आदेश जारी किया |
एक महत्वपूर्ण बात यह कि - इस तरह के केस से जुड़े रिकॉर्ड को सील बंद रखा जाएगा और अदालत के आदेश के बिना किसी भी व्यक्ति को इसकी सूचना न देने का आदेश भी दिया गया है |
मीडिया पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने तो अंकुश लगा दी | क्यूंकि यह कोर्ट का आदेश है तो इस फैसले से इंकार नहीं किया जा सकता और न हीं कोर्ट के उलंघन की तरफ मीडिया का कदम बढ़ेगा | परन्तु एक बात स्पष्ट है और यह लिखना शायद अतिश्योक्ति न होगा कि - अब तो जुर्मकर्ता को किसी भी तरह का अपराध करने पर भय नहीं सताएगा | बातें जब सार्वजनिक होती है तो व्यक्ति को अपने किये गए करतूत पर शर्म या लज्जा आता है | अगर घटना समाज तक पहुंचे नहीं और बात घर से अदालत तक सीमित रह जाए , तो समझा जा सकता है कि - समाज पर इसका क्या असर पड़ेगा !
जहाँ तक मीडिया वालों पर यह सवाल खड़ा हुआ है कि वे मिर्च मशाला लगाकर खबरों को परोसते हैं | तो इससे भी एक बात जुड़ा है कि - जिसे वाकई मीडिया का नाम दिया गया है और जो प्रतिष्ठित मीडिया है वे कभी भी खबरों को तोड़ मरोड़कर परोसना पसंद नहीं करती | मीडिया है तो लोग थाने में जाने से कतराते नहीं | लोगों के दर्द पर मलहम का लेप अगर कोई लगाता है , तो उसका नाम मीडिया है | मीडिया से लोग डरते भी है कि - उनकी बहशीपन की आदतें समाज के सामने लाकर उन्हें खड़ा न कर दे | जिसके बाद समाज , राज्य व देश की निगाहें उनके विषय में कुछ अलग हीं सोंच रखती हुई उसपर चर्चा आरम्भ कर देती है | अगर बात निकलती है तो दूर तलक जाती है और यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि - मीडिया का भुत बड़ा हाथ होता है , अपराधी को सजा दिलवाने में और पीड़िता को राहत पहुंचाने में | अगर मीडिया न हो तो कई निर्भया के परिवारगण अपनी बच्ची को न्याय मिलने की बाट जोहती हुई पथाराकर हमेशा के लिए अस्त हो जायेगी |
मुंबई हाई कोर्ट ने सेक्सुअल हरासमेंट की घटना को उजागर न करने का निर्देश तो जारी कर दिया | परन्तु यह गौर करने की चीज है कि - ऐसे सेक्सुअल हरासमेंट करने वाले आरोपी समाज व देश के सामने सर उठाकर घूमते फिरेंगे | अब उनपर बातों का अंकुश कौन लगाएगा ? और इसका असर समाज पर क्या पड़ेगा ? खैर ..... आपका इस आदेश पर क्या प्रतिक्रिया है बताइयेगा जरुर |
नोट :- इससे पहले यौन हमले केस की सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट के नागपुर बेंच ने कहा था कि - किसी गतिविधि को यौन हमले की श्रेणी में तभी माना जाएगा | जब यौन इरादे से स्कीन टू स्कीन कांटेक्ट हुआ हो | सिर्फ जबरदस्ती छूना यौन हमले की श्रेणी में नहीं आएगा | यह बात उस वक्त उभरी , जब एक नाबालिग लड़की से यौन शोषण का केस सामने आया था | जिसमे 12 वर्ष की लड़की का ब्रैस्ट छूने और छेड़खानी के लिए यौन हमले की सजा सुनाई गई थी | जिसमे आरोपी का तीन साल का न्यूनतम सजा मिल सकता था | परन्तु इस आदेश को ख़ारिज कर दिया गया | मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि - केवल नाबालिग का सीना छूना यौन हमला नहीं कहलायेगा | यौन हमला तब कहलायेगा , जब आरोपी पीड़ित के कपड़े हटाकर या कपड़ों में हाथ डालकर फिजिकल कांटेक्ट करे | नोट में दिए चंद घटना हम आपको एक प्रतिष्ठित मीडियाकर्मी के सौजन्य से बता रहे हैं | .... ( न्यूज़ / फीचर :- भव्याश्री डेस्क )
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