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27 नवम्बर कार्तिक पूर्णिमा का वह पवित्र दिन जहाँ लोग विभिन्न नदियों में डूबकी लगाते हुए अपनी श्रद्धा का परिचय देते है | वहीं आज के दिन लोग अपने शरीर पर गंगाजल का छिड़काव जरुर करते हैं | सनातन धर्म वाले लोग गंगाजल को अपने पवित्र स्थल पर रखकर इनकी पूजा करते है और पवित्रता के लिए इनकी जल से घर में छिड़काव भी |
कल हर नदियों में लाखों - करोड़ों की भीड़ ऐसी उमड़ी लिखना मुश्किल है ! आखिर ये नदियाँ कौन है ? पृथ्वी पर कब और कैसे आई और माँ गंगा कौन है ? इन्हें पृथ्वी पर उतारने के लिए किसने घोर तपस्या / आराधना की जिससे प्रसन्न होकर माँ को इस धरती पर आना पड़ा और कार्तिक पूर्णिमा का रहस्य जहाँ सनातन धर्म वाले आज के दिन नदियों में डूबकी जरुर लगाते हैं , आखिर क्यूँ ये जानना जरुरी है |
फिलहाल आपको बता दे और यह तो सभी जानते है कि माँ गंगा हिमालय में भगवान शिव के जटा में स्थित है क्यूंकि उनके वेग को भगवान शिव ने हीं अपनी जटा में लपेटकर शांत किया नहीं तो उनके वेग से धरती हीं फट जाती और मनुष्य का क्या हाल होता समझा जा सकता है |
हर दौर में विभिन्न राजाओं ने तपस्या की और मनचाहा वरदान मांग लिया जिसमे एक रावण भी ख़ास स्थान रखते हैं और इनकी कहानी से भला कौन परिचित नहीं | मनुष्य आज भी "धरती मेरी माता , पिता आसमान" ऐसा कहते हैं मगर इससे भी बढ़कर नदियों का एक विस्तार है जहाँ हम कभी कभी चुक जाते है और वह स्थान उन्हें नहीं दे पाते और अपनी गन्दगी से भर देते हैं | वहीं पवित्र होने के लिए इनके जल में हीं डूबकी लगाना पड़ता है | नदी नहीं तो हम भी नहीं क्यूंकि इन्हीं से तो हमें ठंढक मिलती है और धरती को शान्ति |
हम नदी , तालाब , झरना , पहाड़ , वन की बात करे तो यह प्रकृति से जुड़ा एक अनमोल रत्न है जिसके बिना जीवनयापन संभव हीं नहीं | हैरान करनेवाली बात है कि नदियों की उत्पत्ति और पृथ्वी पर इनका फैलाव एक अद्भुत चमत्कार है ! दर्शन है या आदमी की जरुरत के अनुसार इनका आगमन |
भगवान शिव भोले भंडारी के मुखड़े पर गौर करे तो उनकी जटा में बंधी है माँ गंगा जिनके पवित्र जल से लोग चनामृत बनाते है | हर पूजा में इनका मौजूद रहना पवित्रता को दर्शाता है | मनुष्य के आखिरी सांसो के बाद मृत शरीर में भी गंगाजल के साथ तुलसी पत्र समर्पित करना श्रद्धा को और इंसान की आत्मा को शांत करने का भाव प्रगट करता है | लोग इतना करके स्वयं को आश्वस्त कर लेते है कि उन्हें मुक्ति मिली |
यह पवित्र नदियाँ एक राज है और इस राज को जानना बड़ा हीं कठिन है | ऐसा इसलिए कि कहानियों का अंत नहीं न आरम्भ है | आखिर ये नदियाँ कौन है ? कहाँ से इनकी धाराएँ निकलकर धरती तक पहुंची ?
तो पौराणिक मान्यता के अनुसार हीं हमें इस बात और कारण से संतुष्ट होना पड़ेगा और साथ हीं आस्था और विश्वास को मन में लेकर इस बातो पर भरोषा भी करना पड़ेगा और यहीं उनके प्रति सच्ची श्रद्धा / भाव का समर्पण कहा जा सकता है | कहानी चाहे कहीं से आरम्भ होता है लेकिन राइटर के करीब आकर वह और भी गहरा बन जाता है तो कहीं कुछ हल्का मगर बदलाव हर हाल में होता है , वहीं सिर्फ आस्था , प्रेम , भरोषा और जिज्ञाषा कम नहीं होता | आदमी स्वयं पर एक विश्वास रखकर हर कहानी पर एक भरोषा रखता आया है और रखेगा जबतक कि इस संसार में मायाजाल है और श्रृष्टि जीवित है |
हर नदी की कहानी है , अपना महत्व है | कोई हिमालय की गोद से आया तो किसी को देवताओं ने स्वयं धरती पर उतारा | कोई आंसुओं की देन है तो कोई मूत्र से उत्पन्न हुईं | कारण अनेक है मगर श्रद्धा एक है , एक जैसी है |
प्राचीन काल में शंकासूर नामक दैत्य ने वेदों को चुराकर समुन्द्र में डाल दिया था और स्वयं को छुपा लिया | भगवान विष्णु मतस्य का रूप धारण कर दैत्य का वध कर वेद ब्रह्मा जी को सौंप दिया | वेद देते समय श्री हरि नारायण की आँखों से आंसू की धाराएं बही , इसी प्रेम भरी आंसुओं की धार से सरयू नदी का निर्माण हुआ जो बहुत पवित्र नदी मानी जाती है |
भगवान शिव के आँखों से भी आंसू के कुछ बुँदे उस वक्त बही जब देवी सती ने आत्मदाह किया था |
आज हमारा भारत भले हीं दो देश में विभाजित हो गया मगर भगवान शिव के उन आंसुओं का एक रूप पाकिस्तान के पंजाब में स्थित है जहाँ अधिकांशतः सनातन धर्म वाले भारतीय की पहुँच नहीं |
कटस राज मंदिर हिन्दुओं का एक तीर्थ स्थल है वहीं कटास सरोवर निर्मित हो गया जो अमृत कुंठ के नाम से प्रसिद्द है और दूसरा अजमेर में टपका जहाँ पुष्कर तीर्थ स्थल है |
इस कहानी की लड़ीं हम आगे लिए चलेंगे क्यूंकि नदियों की कहानी का अंत नहीं और इसका आरम्भ ढूंढना इतना आसान भी नहीं मगर हम आपको विश्वास दिलाते है कि जिस तरह समुन्द्र मंथन से अमृत निकाले गए उसी तरह हम भी विभिन्न ग्रंथो से आपको इस सच्चाई का रसपान जरुर कराएँगे | फिलहाल तो आपने कल कार्तिक स्नान कर लिया होगा वहीं अभी तो और भी स्नान करना बाकी है जिसे हम अपनी शब्दों के जरिये समय समय पर कराते रहेंगे | ख़ास बात यह है कि हम मनुष्य का हर जगह पहुंचना बड़ा हीं कठिन है , संभव नहीं कि हर नदियों का हम अमृत रसपान कर सके | उन्हें हम स्पर्श भी नहीं कर सकते मगर अपने शब्दों के भाव से आपको जरुर स्पर्श कराएँगे क्यूंकि आपने इस कहावत को बखूबी सुना होगा - जहाँ न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि और ऐसे हीं लोगो ने अपनी अंजूरी में हीं गंगा को उतारा और घर में हीं उनका दर्शन किया है जिसमे एक विद्यापति का नाम अंकित है |
कहानी अनेक है श्रद्धा एक है , अपने भाव को हमेशा जीवित रखिये , दर्शन मिलते रहेंगे | ............. ( अध्यात्म फीचर :- रुपेश आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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