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स्वर्ग की लक्ष्मी द्रोपदी , जिनकी शादी ब्रह्मा जी ने पांडवों के साथ तय किया था | वह पांडव असल में 5 इंद्र थे , जो देवताओं के कार्य को सम्पूर्ण करने के लिए धरती पर अवतार लेकर आये थे | महाभारत युग में महाराज द्रुपद की पुत्री द्रोपदी को माँ सीता के सामान हीं पतिवर्ता धर्म से परिपूर्ण माना गया है | इसलिए कि द्रोपदी ने भी पांचों पतियों के अलावा पर पुरुष को कभी अपने मन में नहीं बिठाया |
कीचक और जरासंघ ने द्रोपदी के मान को भंग करने का पूरा प्रयास किया , लेकिन विषम परिस्थिति में भी वह अडिग रही | उन्होंने पति का धर्म हीं पालन किया और स्वयं अपने स्तित्व की रक्षा भी की | प्राचीनकाल से हीं या फिर कहा जाए कि - जब से धरती पर इंसान ने अपना स्तित्व बनाया , पुरुषों ने साजिश के तहत महिलाओं और पुरुषों में फर्क कर , उन्हें चहार दिवारी में कैद कर , उसके लिए अलग नियम / मर्यादा बना डाला | जो आजतक नासूर बनकर , वहीं खंजर स्त्री के स्तित्व पर प्रश्नचिन्ह दाग रहा है और उनके ह्रदय को छलनी कर तार - तार करके , समाज के सामने अक्षम होने पर विवश कर रहा है |
आदिकाल से हीं महिलायें हर मामले में सक्षम रही है और समय - समय पर अपनी वीरता का पहचान / सबूत पेश कर रही है | लेकिन उस सभी बातों को नजरअंदाज कर महिलाओं को कमजोर कर देने हेतु बातों के खंजर से वार करने पर ये महापुरुष कभी पीछे नहीं हटे | उदाहरण तो सबके नजर के सामने है | जो महिलाओं के इतिहास के बारे में जानते है , वे तो माँ दुर्गा की शक्ति से परिचित है हीं |
महिलाओं के पाँव में बेड़ियाँ बंधी नियमों का - जिसमे एक नियम यह भी कि - पुरुष भले हीं कई स्त्रियों के साथ सबंध रखे पर वहीं महलाओं को दूसरे पुरुष के संपर्क में आने पर उसे बदचलन होने का तौहफा दिया जाना तय किया | महिलाओं के लिए नियम बने कि - पर पुरुष की कल्पना करना भी उनके लिए महापाप है |
द्रोपदी , महाराज द्रुपद की अयोनिजा पुत्री थी , उनका रंग कन्हैया वर्ण के कमल के जैसा कोमल और सुन्दर था | इन्हें कन्हैया भी कहा जाता था | इनका व्यक्तित्व लावण्य , अनुपम व अदुतीय था | इनके जन्म के समय आकशवाणी हुई थी - द्रोपदी का जन्म देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिए एवं उन्मत क्षत्रियों के संहार के लिए हीं , इस रमणी रत्न का जन्म या फिर अवतार , धरती पर इंसान के रूप में हुआ था |
सदियों से जिस तरह स्वयं ईश्वर भी , इंसान रूप में अवतार लेकर राक्षसों का वध या फिर विभिन्न - विभिन्न जुर्म आदि का विनाश करने के लिए जन्म लिया था | ठीक उसी तरह द्रोपदी का भी जन्म , कौरवों को भयानक भय दिखाने व दुर्योधन के वध के लिए एवं महाभारत के युद्ध में एक और इतिहास बनाने व महिलाओं को द्रोपदी जैसी शक्तिशाली बनाने के लिए हुआ था | महिलाओं में शक्ति जागृत कर निर्भयता से कदम आगे बढ़ाने के लिए द्रोपदी को धरती पर उतारा गया , यह चरित्र अनोखा था | पूरी दुनियां के अबतक के इतिहास में कोई दूसरी स्त्री ने इस धरती पर जन्म नहीं लिया |
रामायण में माँ सीता पर जैसे जुर्म किया गया , ऐसे भी महाभारत में द्रोपदी के साथ अन्याय हुआ | द्रोपदी सम्पूर्ण नारी थी व उनका जीवन संघर्षों में हीं रहा , वह भी अकेली पांच पतियों के पत्नी बनकर भी उन्हें , किसी एक पति का भी साथ नहीं मिला | द्रोपदी का तर्क , बुद्धिमता , ज्ञान और पांडित्य के आगे महाभारत के सभी मुख्य , महत्वपूर्ण पात्र लाचार नजर आते हैं |
द्रोपदी आज की नारियों के लिए एक प्रेरणा है | महिलाओं को उनके पदचिन्हों पर चलकर , स्वतंत्रता एवं बचाव का रास्ता मिल सकेगा | इसलिए की उस वक्त नारी मुक्ति आन्दोलन का स्वक्ष नीव द्रोपदी ने हीं डाली थी | ऐसे देखा जाए तो , आज भारत के अधिकांशतः घरों में द्रोपदी ने जन्म लिया है | कोई अपनी बुद्धि से अपना बचाव कर रही है तो कोई रौंदी जा रही है |
द्रोपदी का जन्म अग्निकुंड की आग से हुआ था | लेकिन सम्पूर्ण जीवन वह आग की लौ की भांति धधकती हीं रही | उस आग को बुझाने वाले भगवान श्रीकृष्ण के आलावा कोई न था | इसका जीता - जागता प्रमाण है द्रोपदी का चीरहरण | जब कपट के कारण महाराज युद्धिष्टिर जुआ में अपने राज - पाठ , धन - वैभव और स्वयं के साथ पत्नी द्रोपदी तक को हार गए , तब दुःसासन , दुर्योधन के आदेश से द्रोपदी को एक वस्त्राअवस्था में हीं उनके श्यनकक्ष से बाल पकड़कर घसीटते हुए भरी सभा में लाकर निःवस्त्र करने का प्रयास किया व एलान कर सभा में बैठे सभी महारथियों को खामोश कर दिया |
भीष्मपितामह , द्रोण ने अपनी आँखें मूंद ली , विधुर सभा से उठकर चले गए | जब द्रोपदी चीखती - चिल्लाती हाथ जोड़कर अपने बचाव की गुहार करना आरम्भ किया , तो सभी महारथियों ने ख़ामोशी का घूंट पीकर आँखें फैलाए तमाशबीन बन गए | आखिरकार द्रोपदी ने अपनी ह्रदय व निर्मल मन से जुबान पर श्री कन्हैया का नाम लेते हुए अपनी बचाव के लिए उन्हें पुकारा | तो श्री कन्हैया को वस्त्रावतार लेना पड़ा | फिर दुःसासन जिसके पास 10 हजार हाथियों जैसा बल था , वह साड़ी खींचते - खींचते थक हारकर जमीन पर गिर पड़ा , लेकिन द्रोपदी निःवस्त्र न हुई | जिस भक्त को भगवान श्री कन्हैया का आशीर्वाद मिला हो , या फिर जो भक्त अपनी ह्रदय से भगवान को पुकारे , तो उस प्रेम से ओतप्रोत होकर प्रभु को तो उसके बचाव में आना हीं पड़ेगा और भगवान के होते उस भक्त का कोई कुछ कैसे बिगाड़ सकता है |
द्र्पदी का विवाह भी स्वयंबर रचाकर हीं किया गया था | राजा द्रुपद ने स्वयंबर रचाया और शर्त रखी कि जो वीर धनुष उठाकर तीर को निशाने पर मारेगा वहीं सर्वश्रेष्ठ धनुषधारी द्रोपदी का पति होगा | अर्जुन से बड़ा धनुषधारी उस वक्त कौन हो सकता था ? और फिर यह तो तय हीं था कि इन पांचों इंद्र का विवाह भी द्रोपदी यानी स्वर्ग की लक्ष्मी से हीं होना है |
अर्जुन द्रोपदी को जीतकर व स्वयंबर रचाकर घर ले आये | कुंती , अर्जुन की माताश्री उस वक्त ध्यान में मग्न थी | अन्दर से हीं आवाज दे दिया बेटे जीता हुआ सामान पांचों भाई मिलकर बाँट लो | माँ का आदेश सुनकर पांचों भाई , द्रोपदी को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया | मजबूरन माँ के अवहेलना न हो , सो द्रोपदी पांचों पांडव को पति स्वीकार कर पांच पति की पत्नी बन गई , यह इतिहास का पहला नाम था |
पांचों पतियों से द्रोपदी को एक - एक पुत्र रत्न प्राप्त हुआ | युद्धिष्टिर से पृथ्वी विद्या , भीम से सुतासोमा , अर्जुन से श्रुतकर्मा , नकुल से सातानिका और सहदेव से श्रुतासेना और ये सभी पुत्र का जन्म देवों के आवाहन से हुआ था |
माना जाता है कि द्रोपदी भारत की पहली स्त्री थी , जिन्होंने महिलाओं पर होने वाले अत्याचार पर आवाज उठाई थी और कौरवों के जुर्म की शिकार के दौरान उन्हें भी अपनी शक्ति से परास्त कर दी थी | द्रोपदी का बेहद सुंदर होना , दुर्योधन के मन को भी हिला दिया था और उनसे कई मायने में दुश्मनी लेनी पड़ी | रेगिस्तान जैसे खांडवप्रस्था जो पांडव पुत्रों को गुजर - वसर करने को मिला था , वह भगवान श्रीकृष्ण की मदद से इन्द्रप्रस्थ बन गया | उस झाड़ी में महल का निर्माण किया गया | महाराज द्रुपद की लड़की वीर घ्रिष्ट्धुम की बहन प्रतापी पांडओं की पत्नी होने के बावजूद , वह संघर्ष में हमेशा तन्हा थी | लेकिन उनके पास एक बहुमूल्य शक्ति थी , जिससे उन्हें कोई परास्त नहीं कर सकता था और यह शक्ति थी द्रोपदी का भगवान श्रीकृष्ण की सखी के रूप में होना |
द्रोपदी हमेशा अधर्म के खिलाफ अपने पतियों को युद्ध के लिए प्रेरित करती रही | चीरहरण के समय उनके अपमान करने व अपशब्दों से उनके ह्रदय को चोट पहुंचाने के एवज में हीं उन्होंने अपने केश खुले छोड़कर एक तरफा युद्ध का एलान न करती , तो पांडव महाभारत की चुनौती को कभी भी स्वीकार न करते | श्रीकृष्ण इस बात को भलीभांति जानते थे , इसलिए युद्ध भूमि में अर्जुन को गीता का ज्ञान देकर अपनी सखी द्रोपदी यानि कन्हैया की मदद का उनकी जुबान से निकाली गई बद्दुआ को सच करने में सहयोग देकर उनके प्रण को सफल कराया | अपनी सखी के अपमान का , उनके दर्द पर प्यार भरा मरहम लगाया |
श्री कन्हैया ने अपनी जंघा पर ताल ठोककर भीम को भी उसकी प्रतिज्ञा याद दिलाई थी , तभी दुःसासन मारा गया और द्रोपदी से किया गया वादा कि - इसके खून से हीं द्रोपदी अपनी बाल धोएगी और फिर बाल बांधेगी , पूरा कर उन्होंने एक इतिहास रचा |
वैसे यह तो महाभारत की कथा का , इतिहास का उस पौराणिक गाथा का एक पन्ना है | लेकिन उसी पन्ने का थोडा भी अंश , आज भी आज की महिलायें अपने जीवन में उतारकर आगे बढ़े तो उन्हें कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ेगा | आज भी कन्हैया है बचाव के लिए , रक्षा के लिए दौड़ पड़ेंगे , लेकिन बुलाना तो हमें हीं होगा | याद रहे जुर्म सहना भी उतना हीं बड़ा पाप है , जितना की जुर्म करना | इसलिए कभी भी , किसी को भी जुर्म नहीं सहना चाहिए , भले ही वह अपने घर का सदस्य क्यूँ न हो |
आरम्भ से हीं महिलाओं में अपार शक्ति था , है और रहेगा | लेकिन उन्हें अपनी शक्ति को पहचानना पड़ेगा और वक्त आने पर उन्हें माँ दुर्गा , काली का रूप भी धारण करना पड़ेगा , यहीं आज के समय का तकाजा है | .......... ( अध्यात्म फीचर :- एम० नूपुर )
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