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काश ! तुम्हारे बसेरे का ठिकाना पता होता
तो , तुम्हारे गोद पर सोने को दौड़ा हुआ मै आ जाता
पर दिन आती नहीं , जो तन्हा रात गुजर जाता
और बेरुखी सी सवाल का , जवाब मुझे मिल जाता
गुजर गए कुछ दिन , तेरी यादों के सहारे
अब तो चैन भी नहीं आता , इस दरिया के किनारे
कभी गूंजा करती थी धुन यहाँ की वादियों में
अब तो न सुर है न ताल है , इस घर की समाधियों में
खामोश रह कर भी तू सवाल छोड़ गई
और मै बोलकर भी , जवाब दे न सका
अब तू हीं नहीं , तो तेरा साथ नहीं मिलता
तकिया बनकर , अब तो तेरा हाथ भी नहीं मिलता
कटता नहीं वक्त , तेरी यादों के सहारे
आ गया हूँ अब , मै मौत के किनारे
( कविता :- रुपेश आदित्या )
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