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क्या सोंच रहे हो , मालूम नहीं
किसे देख रहे हो , एहसास नहीं
लेकिन एहसास मुझे है !
तुम राहत पाने की खातिर बैठे हो यहाँ पर
लेकिन तुम्हे क्या मालुम है ?
तुम्हारे लिए यह जगह मौत का कुआँ है शायद !
या फिर गुजरने वाले के लिए
मौत का कुआँ न बन जाए उनका सफ़र
कौन तृप्त होगा क्या पता ?
यह तो वक्त का तकाजा है
लेकिन अच्छा होगा तुम अपनी जगह आराम करो
हां याद आया तुम्हारे आराम करने की जगह तो विलुप्त हो रहा है
तभी तुम सफ़र कर के इतनी दूर बैठे हो
लेकिन तुम अनभिज्ञ हो या फिर ........ !
( कविता :- रुपेश आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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