तो ! समन्दर के उफान को पत्थरों से टकराने का एहसास सा हुआ
चाहत नीलाम होते भी देखा तो , एक आह सी उठती क्लेश / पीड़ा भी नजर आयी
जब भी तुम्हें देखता हूँ शमा बन जलते हुए
तो ! जेठ सी चिलमिलाती धुप में नंगे पाँव रेगिस्तान में स्वयं को भटकते हुए पाता हूँ
एहसास मुझे भी है तुम्हारे दर्द का , जो पीया है तुमने बारी - बारी और जीया है तेज़ाब में डुबकी लगा - लगाकर
बूंद भर अमृत नहीं / छाँव नहीं / प्रीत नहीं , सिर्फ बेवफाई की चादर ओढ़कर
माघ की शीतलहर भी गुजारी है तुमने
मैंने देखा है / महसूस किया है और जीया है , तुम्हें बारी - बारी
वफ़ा - वेवफाई में तुमने फर्क जाना हीं कहाँ ?
वफ़ा करने वाले को भी चूमा था तुमने , वहीं वेवफाई करने वाले का भी दामन थामा था
समर्पित हो चली थी तुम पांचाली की तरह , वगैर सवाल बढ़ती रही स्नेह सरिता बन
दूर बैठा मै सिलता रहा था बार - बार तुम्हें
तुम अनभिज्ञ एक पल के लिए भी , जो दीदार ए यार कर लेती
तो ! जी लेता मै भी जिंदगी तुम्हारे साथ , कुछ पल के लिए
और ! तुम्हारे करीब आकर तुम्हारा हर गम पी लेता अमृत समझ कल के लिए
तुम्हारे लिए , हाँ तुम्हारे लिए , सिर्फ तुम्हारे लिए .........
( भव्याश्री न्यूज़ द्वारा प्रकशित :- आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
फोटोग्राफी : भव्याश्री
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