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गंगोत्री मुख्य तीर्थ स्थल , गंगा नदी का पवित्र उद्गम क्षेत्र , यह उत्तराखंड भारत का 27 वा नया राज्य है | अनेक धार्मिक स्थल होने के कारण उत्तराखंड देव भूमि के नाम से प्रसिद्ध है , जिसकी राजधानी देहरादून है | देहरादून घाटी के नाम से चर्चित है |
हिंदुओं के चार धाम - बदरीनाथ , केदारनाथ , भागीरथी यानी गंगोत्री एवं यमुना का उद्गम क्षेत्र यमुनोत्री , हरिद्वार ऋषिकेश और हेमकुंड साहिब इसी क्षेत्र में स्थित है |
प्रसिद्ध क्षेत्र - फूलों की घाटी मसूरी , कौसानी , रानीखेत , नैनीताल , चमोली आदि रमणीक पर्यटक स्थल है | यहीं पर नेशनल पार्क जिसे लोग कार्बेट नेशनल पार्क के नाम से जानते हैं व राजा जी राष्ट्रीय उद्यान भी स्थित है | वैसे यहां रंग बिरंगे फूलों की घाटी का आनंद उठाने लोग आते हैं | तीर्थ का तीर्थ और आनंद का आनंद भी , जिसे जन्नत से कम नहीं आंका जा सकता है | वैसे यह सभी तीर्थ स्थल तो धरती का स्वर्ग हीं माना गया है , जिसे इंसान के लिए देवी देवताओं के दर्शन के साथ-साथ सुन्दरता से भरा झील , खुशबुओं से भरा बगान , पर्वत , रंग - बिरंगे चिड़ियों की चहचहाहट , हवादार व छाया युक्त सड़कें , ऊंचे पर्वत , कोलाहली भागीरथी सेब के सुनहरे बागान तथा इस क्षेत्र के आस पास पाए जाने वाले सामान्य जीव - जंतुओं में है - लंगूर , लाल बंदर , भूरे भालू , सामान्य लोमड़ी , चीते , बर्फीले चीते , हिरण , कस्तूरी मृग , शेर साही तहर आदि बसाए गए हैं | यहाँ पर विभिन्न रंगों के समावेश की तितलियां और भंवरे भी अपनी अदा से मोहित करती है |
गंगोत्री गंगा नदी का उद्गम स्थान है| मां गंगा का मंदिर समुद्र तल से 3042 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है | भागीरथी के दाहिनी ओर का परिवेश अत्यंत सुंदर व मनोहारी है | यह उत्तरकाशी से लगभग एक 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है | पवित्र पावनी गंगा मैया के दर्शन के लिए लाखों श्रद्धालु तीर्थयात्रा के लिए यहाँ आते हैं | माँ यमुनोत्री की तरह माँ गंगोत्री का पवन मंदिर भी अक्षय तृतीय के पवन पर्व पर खुलता है और दीपावली के दिन मंदिर के कपाट बंद हो जाते है |
वैसे पौराणिक गाथा के अनुसार - भगवान श्री रामचंद्र जी के पूर्वज , रघुकुल के चक्रवर्ती राजा भागीरथी ने यहां एक पवित्र शिलाखंड पर बैठकर , भगवान शंकर की प्रचंड तपस्या / आराधना की थी | इस पवित्र शिलाखंड के निकट हीं , इस मंदिर का निर्माण 18वीं सदी में ही किया गया | ऐसी मान्यता है कि - देवी भागीरथी ने इसी स्थान पर धरती का स्पर्श किया था | महाभारत के युद्ध में मारे गए अपने प्रियजनों की आत्मिक शांति और मुक्ति के लिए , इसी स्थान पर महादेव यज्ञ का अनुष्ठान भी किया गया था | 20 फीट ऊंची पत्थरों से निर्मित यह मंदिर , सफेद चमकदार ग्रेनाईट से निर्मित है | इस मंदिर के दर्शन के बाद , यानी इसकी सुंदरता व भव्यता देखकर , कोई भी इंसान सम्मोहित हुए बिना नहीं रह पाएगा ,यह सत्य है | शिवलिंग के रूप में एक नौसर्गिक चट्टान भागीरथी नदी में जलमग्न है | यह दृश्य अत्यधिक खुबसूरत / मनमोहक व आकर्षक है | इसे देखकर देवी शक्ति का प्रत्यक्ष रूप में अनुभूति व अनुभव होता है |
भगवान शंकर ने इस स्थान पर अपनी जटाओं में माता को लपेट लिया था | शीतकाल के आरंभ में , मां गंगा का जलस्तर काफी नीचे चला जाता है , तब पवित्र मन , हृदय वालों को इस उक्त पवित्र शिवलिंग का दर्शन होता है | कई सदियों से यह स्थान व मंदिर हिंदुओं के लिए आध्यात्मिक प्रेरणा का स्रोत रहा है | आरंभिक दौर में तीर्थ यात्रा पैदल हीं हुआ करती थी , लेकिन समय की नजाकत और विज्ञान के इस कलयुगी दौर में , कई संशाधन ने यात्रा का नया रूप ले लिया है , जिससे लोग आसानी से कम समय में दूरी तय कर पाते हैं | खैर .... अब तो इस स्थान पर पहुंचने के लिए बहुत सारी व्यवस्था उपलब्ध है | वैसे इस क्षेत्र में आकर केदारखंड में मुख्य मठ की तीर्थ यात्रा बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है | इसके पास मार्कंडेयपूरी था और उनके तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु द्वारा सृष्टि के विनाश का दर्शन कराया गया |
इस गांव के निवासी हीं गंगोत्री मंदिर के पुजारी हैं | गंगोत्री से 19 किलोमीटर दूर 3892 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गोमुख गंगोत्री ग्लेशियर का मुहाना एवं भागीरथी नदी का उद्गम स्थल है | यहां की बर्फीली जल में स्नान करने से सारे दुख दूर हो जाते हैं व सभी पाप धुलकर मिट जाते है | इसलिए सभी को यहां का दर्शन एक बार जरूर करनी चाहिए |
भागमभाग के इस कलयुगी दौर में लोग प्रतिदिन न जाने कितने सारे धन खर्च करते हैं | अहमियत देते हैं सिर्फ उन जरुरत को , जो अपने प्रतिदिन में दस्तक देती है | लगभग देश की आधी आबादी यही कहती है - धन नहीं या फिर समय नहीं घूमने के लिए | लेकिन सोंचा जाए तो - धन या समय अपने हाथ की चीज है , जिसे लूटा देने से वो वापस नहीं आएगी | इंसान जब भी जन्म लेता है , तो वो खाली हाथ पैदा लेता है | सभी कुछ तो इसी धरती पर पाते है लोग और समय भी जिसे काफी अनमोल कहा गया है , क्या जिंदगी के सारे समय को हम उचित रूप में हीं गुजारते है | साल में 15 दिन बिलकुल निर्धारित कर लीजिये कि - भारत के किसी भी तीर्थस्थल पर एकबार भ्रमण करना हीं है , तो निश्चित रूप से आप स्वयं को वहां पायेंगे | हाँ इतना हम आपसे जरुर कहेंगे कि - जब भी तीर्थ करे या मन बनाये घुमाने का , तो ठंढी या गर्मी के मौसम में हीं | क्यूंकि बरसात के मौसम में घुमना उचित नहीं |
बरसात का मौसम सुहावना व रोमांटिक माना गया है | यह सच है , इस मौसम में घूमना अच्छा लगता है | परन्तु किसी भी हिल स्टेशन पर इस मौसम में जाना खतरें से खाली नहीं और ज्यादातर तीर्थ स्थल पहाड़ी क्षेत्र में हीं बना है | इस मौसम में कई खतरें देखने व सुनने को मिलती है , जिससे मन में डर समा जाता है | इसलिए सफल यात्रा / तीर्थयात्रा करे और अपनी आँखों की कैमरे में कैद करके ले आयें प्रकृति की सुन्दरता और बरसात के मौसम में लुफ्त उठायें गर्म चाय और पकौड़े के संग घर के स्क्रीन पर सुहावना मौसम का | इससे इस रोमांटिक मौसम की चाहत और भी दोगुनी हो जायेगी |
अपने हृदय को साफ करके मन में ठान लीजिए और प्रति साल समय निकालकर , मां के चरणों का स्पर्श कर , एक नई दिशा में कदम बढ़ाइए | यहाँ की खूबसूरती से प्रेरणा लीजिए , लहरों को पढ़ने की कोशिश कीजिए , क्या कहती है इनकी लहरें ? नमन कीजिए "जय हो मां गंगोत्री की" | .... ( अध्यात्म फीचर :- आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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