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-: दुःख में हीं सुख है छुपा रे :-
ओ मनवा दुख में ही सुख है छुपा रे | दुख से घबराए बिना कोई इंसान सुख नहीं पाता | सुख वही पाता है - जिसने दुख झेला हो | सुख का अनुभव किसी को आखिरकार कैसे होगा ? जिसने कभी दुख झेला ही नहीं |
जुदाई इंसान को दुखी करता है , उसपर असहनीय दुख भी कभी-कभी इंसान को झेलने पर जाते हैं | कई लोग अपने परिवार के किसी सदस्य के लिए भावविभोर हो जाता है , तो कभी अपने सपनों के टूटने पर भी | याद है मुझे वह दिन , जब मैंने प्रिया का खिलौना तोड़ दिया था | उस वक्त वह 7 साल की थी और मैं 14 साल का था , लेकिन मैं था तो बच्चा ही ना ! परिवार के सभी सदस्यों ने उसे मना - मना कर हार गए लेकिन वह नहीं मानी और रोती बिलखती रही | मैं कमरे में चुपचाप जाकर सोने की कोशिश की , पर नींद आंखों से कोसों दूर था | जब नींद आंखों में हो और नींद आये नहीं , तो ऐसे में इंसान तड़प तड़प कर करवटें बदलते हुए रात गुजार लेता है | परन्तु वह दिन को क्या करें ? जब सूर्य की रौशनी पहरेदार बनकर सामने खड़ी हो , जिसमें आदमी का चेहरा साफ दिखाई दे रहा हो |
तीन-चार दिन गुजर गए थे लेकिन प्रिया उस खिलौने के टुकड़े को जब भी देखती , तो वह फिर रोना शुरु कर देती | मैंने उस शाम को अपना पॉकेट मनी का गुल्लक फोड़ा , उसमें मुझे 265 रुपये मिले थे | पास वाले बाजार में गया , खिलौने की कीमत पूछी तो उसने 310 रुपए बताएं | दाम सुनकर मैं आसमान से नीचे गिर पड़ा और सोचने लगा ! अब क्या करूं ? सबसे कम कीमत वाले खिलौने का दाम था 310 रुपये और मेरे पास थे 265 रुपये | 45 रुपये मुझे कम पर रहे थे , मैंने सोंचा चलो अगले महीने की राशि मिलाकर यह खिलौना खरीद लूँगा |
तीन दिन बाद मै एक दोस्त के घर गया | गोवा से मेरे दोस्त की बुआ आई थी , जो उसी वक्त वापस जा रही थी | गाड़ी दरवाजे पर खड़ी थी और सामान रखा जा रहा था | कुछ हीं देर बाद बुआ भी दरवाजे पर आ गई और मैंने जब उनका पाँव छुआ , तो उन्होंने मेरी जेब में एक100 रुपया का नोट डाल दिया | इस100 रुपये को पाकर मैं बहुत खुश था कि अब मैं प्रिया के लिए खिलौना ले सकूंगा | घर आया तो मेरा बाकी रुपया मेरे टेबल के स्टूमेंट बॉक्स में नहीं थे | रुपए ना देखकर मेरा होश हीं उड़ गया , लेकिन मेरा प्रयास जारी था | मैं जब भी खिलौने खरीदने के विषय में सोंचता तो रुपए खोने का बहुत दुख पहुंचता | लेकिन जब प्रिया को रोते हुए देखता तब उसके सामने मुझे अपना दुख बहुत छोटा जान पड़ता |
बोर्ड परीक्षा देने के बाद मैं पास वाले शनि भगवान के मंदिर गया | शनिवार को वहां बहुत भीड़ रहती है | शाम का समय था , देखा एक व्यक्ति के जींस के जेब से उनका पर्स जमीन पर गिर गया और वह व्यक्ति मंदिर के अंदर जाने लगे | तभी मैंने उस पर्स को उठाया , देखा बहुत सारे नोट तो ऊपर से ही नजर आ रहे थे | वह पर्स जब मैंने उन्हें दिया तो वह पर्स देखकर अवाक रह गए ! उन्होंने मेरा पीठ थपथपाकर प्यार दिया और कहा - बेटा जानते हो , इस पर्स में मेरा 25,000 रुपये और एक हीरे के गले का चेन है , जो मैं अपनी पत्नी को देने जा रहा था , आज उसका जन्मदिन है | थैंक्स बेटे और उन्होंने पर्स से 1000 रुपये निकालकर उपहार में मुझे देने लगे | मैं जरूरतमंद जरुर था पर लालची नहीं |
मैंने उनसे कहा - अंकल देना हीं है , तो मुझे अच्छे अंक से पास होने का आशीर्वाद दे दीजिए , मेरी कॉपी अच्छी नहीं गई है | इस बात को सुनकर उन्होंने मेरा हाथ चूमते हुए कहा - बेटा अच्छा नंबर हीं नहीं , तुम स्कूल में भी सभी से प्रथम आओगे , यह मेरा दिल से दुआ और आशीर्वाद है | फिर हम दोनों अपनी - अपनी मंजिल की तरफ बढ़ गए |
कुछ ही दिन बाद मेरा रिजल्ट निकलने वाला था , लेकिन अंदर से मैं बहुत डरा डरा व सहमा सा था , यह सोंचकर कि न जाने बोर्ड में मेरा क्या होगा ? परीक्षा अच्छी भी नहीं गई थी सो चिंतित था मैं , ऊपर से परिवार का इंतजार सो अलग | अच्छे नंबर नहीं आए तो सभी का दिल / ख्वाब टूट जाएगा , जो उन्होंने मेरे लिए रखे थे मन में बसा कर | गर अच्छे नंबर नहीं आये तो अच्छे कॉलेज में दाखिला भी नहीं मिलेगी |
खैर ....... वह दिन भी आ गया जब मै रिजल्ट देखने गया , तो मेरा नाम सूची में हीं नही था , न तीसरे नंबर पर न दूसरे नंबर पर | अब तो मैं बहुत घबरा गया और अब बचा था साधारण सा रिजल्ट , मैंने उसे भी देखा और तीन - चार बार देखता ही चला गया , लेकिन मेरा नाम उस सूची में भी नहीं था | मैं उदास अपने घर पहुंच गया | घर वाले मेरा उदास चेहरा देख पहली बार तो कुछ नहीं कहा और फिर बोल पड़े - फेल हो गया है न ! कोई बात नहीं तुमने मेहनत तो की थी , खैर अगली बार ज्यादा मेहनत करना , परीक्षा देनेवाले की हीं हार और जीत होती है , मन दुखी मत करो |
मैं खामोश अपने रूम में जाकर पलंग पर सो गया | कुछ ही देर बाद मेरा एक दोस्त अपने पिता के संग मेरे घर आया | मुझे उठाया गया , जब मैं बाहर गया तो उसके हाथ में मिठाई का डब्बा देखकर मै बहुत दुखी हुआ और मुझे गुस्सा भी आया , इसलिए कि क्लास में अक्सर वही प्रथम आता था | मैंने सोचा आ गया चिढ़ाने , क्या जरूरत थी अपनी खुशी की मिठाई वह भी मेरे घर लाने की , उसे शर्म नहीं आई ? मगर मै क्या करता , घायल था , मुझमे क्षमता नहीं थी उससे लड़ने की | मेरे घर वाले भी अनमने ढंग से मिठाई खा ली | मिठाई खाने के बाद दोस्त के पिता ने पूछा - तो , बेटा क्या सोचा है ? किस कॉलेज में एडमिशन ले रहे हो और आर्ट लोगे या फिर साइंस ? वैसे मैंने तो सोचा है कि इसे डॉक्टर बनाऊं , इसलिए साइंस पढ़ाना चाहता हूं |लेकिन तुमने क्या सोचा है बताओ ? दोनों एक हीं कॉलेज में पढ़ोगे तो आने - जाने में पैसे की भी बचत होगी | इतना सुनकर मेरा गुस्सा काबू से बाहर आने को हीं था की तभी माँ ने मेरा हाथ थामते हुए मुझे शांत करते हुए कहा - भाई साहब ये कॉलेज में एडमिशन कैसे ले सकता है ? इसबार इसका रिजल्ट खराब हो गया है , मां ने यह बात स्वाभाविक रूप से कह डाली |
इतना सुनते ही उन्होंने कहा - भाभी जी यह क्या कह रही हैं आप ! आशुतोष तो प्रथम आया है , यह देखिए रिजल्ट किसने कहा आपको कि - यह फेल हुआ है ? अगर फेल होता तो क्या मैं आपके घर लड्डू बांटने आता ! उनकी बात सुनकर सभी लोग एकदम से चकरा गए थे | वाकई अंकल ने ठीक ही कहा था - मैं स्कूल में प्रथम आया था , लेकिन पेपर खराब हो जाने के कारण मैंने प्रथम सूची देखी ही नहीं | दूसरी - तीसरी व सामान्य सूची देखकर मै घर वापस आ गया था | उस दिन मुझे बहुत हीं ज्यादा खुशी मिली थी , क्योंकि हार के बाद मैंने जीत सुनी थी |
यह जीत मंदिर में दिए अनजाने रिश्ते के पहचाने अंकल के आशीर्वाद से मिला था | मेरा दिल का खिलौना टूटते - टूटते बचा था , नहीं तो शायद मैं प्रिया से भी ज्यादा बिलख - बिलख कर रोता | ऐसी खुशी मैंने आज तक नहीं पाई थी | कहते हैं न - "कर भला तो हो भला" मेरी ईमानदारी ही मेरी जिंदगी में सितारे जड़ दिए थे और महसूस हुआ "दुख में ही सुख था छुपा रे" |
मुझे तो ख़ुशी मिल गई थी , परन्तु आज भी हमारे पास 310 रुपये नहीं थे प्रिया के खिलौना खरीदने के लिए | आज मै पूरी तरह उसके दुःख से वाकिफ हुआ , छनभर के दुःख से हीं मैंने गम के समुन्द्र में डूबकी लगाने जैसा अनुभव किया था | अब मुझे एहसास हो गया था - दुःख क्या होता है और सपने या खिलौने टूटने का मर्म ? आज मै जान पाया | अभी भी मेरी कोशिश जारी है 310 रुपये सिंचित करने के लिए , ताकि मै प्रिया को खिलौना दे सकूँ | लेकिन यह सोंचकर आज भी दुखी होता हूँ कि कहीं वह खिलौना बिक न जाए जो मैंने मन बनाये हैं प्रिया को देने के लिए | ...... ( कहानी :- आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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