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-: कशीश :-
पास होकर भी , हम दूर है
कहीं तो मजबूर है !
कभी एक थी मंजिल अपनी
फिर क्यूँ ?
रुक गए सफ़र , राह में चलते - चलते
कहीं तुम रुके , कहीं मैं
रिश्तों के ताने - बानों में
और ! मिल न सकी मंजिल कहीं
एक बार टूट गए हम , आज फिर जुड़ते - जुड़ते
छोड़ दिए विरान , जन्म देकर रिश्तों को
वक्त के साथ बढ़ते - बढ़ते
जिंदगी की शाम तक
आज भी हम शेष है कहीं ....
कहीं आज भी तुम शेष हो शायद !
एम० नूपुर द्वारा रचित कविता "कशीश"
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