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काश ! ठहर जाते
शून्य पड़ गए हम समेटते - समेटते
फिर भी ! तुम पूरे न हुए
निकल गए दूर कितने , खुशियों की तलाश में
जिंदगी अभी बाकी है , समेट लायेंगे दुनियां तुम्हारे लिए
चाहत मुड़कर देखा नहीं , सूर्य अस्त को है
जब बेचैन होती है नजर , तलाश सुबह की
मिलता नहीं तो , पागल हो जाता है मन
डूब जाती है नजरें , खो जाता है चैन
ये कैसा सितम ? वक्त के हाथ लूट गए
हम पढ़ सके , न तुम कुछ कहे
खो गए अनमोल वो पल , सांसे कम पड़ गई
बीनकर कहाँ से लाये हमारे लिए
पल - पल रीत गया , सावन बीत गया
पतझड़ में कैसी बरसात ?
खुशियाँ तुम्हारी मै थी , एहसास हुआ जब
जिंदगी शाम हो गई
कविता : आदित्या , एम0 नूपुर की कलम से
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