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आह !
मच्छली का मच्छलियों को खा जाना
कल तक भ्रम था , मेरे लिए
पर आज जब करीब से देखा
तो एहसास हुआ ! इनके दर्द का
रिसते लहू / क्लेश व पीड़ा का
लेकिन कितनी अजीब बात है !
छोटी मच्छालियाँ नहीं मार सकती
एक बड़ी मच्छली को
जो सैकड़ो को खा जाती है
महसूस कर देखा , तो लगा
शायद ! एकता नहीं इनमे
इसलिए ऐसा होता है
और तभी तो
मिट्टी लाल हो जाती है , अक्सर इनकी लहू से
( कविता :- आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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