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"सरहद के इस पार या उस पार"
साँसे , सजा ए मौत बन रही है , दिल का रिश्ता धुंआ - धुंआ है
और घर जल रहा है अपने हीं चिराग से
यह कैसी त्रास्दी कि ? अपने हीं लहू से अवनी लहुलुहान है
स्त्री अपनी शक्ति के आगे बेजार है
माँ का कोई मजहब नहीं होता , सरहद के इस पार या उस पार
बटवारे से पहले या बटवारे के बाद , मातृत्व के टुकड़े हुए हजार
जन्म लिए हिन्दुस्तान में , बेटी हिन्दुस्तानी थी
निकाह हुआ पाकिस्तान में बेटी पाकिस्तानी बनी
आज उसी बेटी का जिश्म सोता है पाकिस्तान में
पर दिल हिन्दुस्तानी दस्तक देता है , बेटी क्या करे
दो मुल्को का सुख भोग , फूल से दो बच्चे आये
नाना का घर हिन्दुस्तान , दादा का बना पाकिस्तान
बटवारे में खिंची गई लकीरों का जुर्माना माँ को भरना पड़ा
दो वीर जवानों में - एक हिंदुस्तान , एक पाकिस्तान के बोर्डर पर
लड़ते - लड़ते शहीद हो गए
स्वार्थ की लड़ाई , नापाक लड़ाई , बेबुनियाद लड़ाई
ऐसी हीं लड़ाई में विदाई होती रही आकांक्षाओं का
जिसमे न सुबह न शाम , सिर्फ रात हीं रात आमवस्या की तरह
जहाँ वेदना चीखती / चिल्लाती है और पुनः
खामोश सिसकियाँ लेकर होती है , जीने पर मजबूर
एक माँ की बिरह से पूछो , वो क्या सोंचती है / क्या चाहती / क्या मांगती है ?
औलाद को जन्म देकर / पालकर , बेमतलब शहीद करवाना ! शायद कदापि नहीं
आजादी की लड़ाई कुछ और थी , आज की लड़ाई का दौर कुछ और है
क्या कसूर है ? पकिस्तान में निकाह या हिन्दुस्तान में जन्म
आजादी के बाद क्या बटवारा जरुरी था ? गर था , तो फिर लोग संतुष्ट क्यूँ नहीं !
आज भी मैंने आँचल फैलाया है , आओ एक हो जाए हम
बेबुनियाद लड़ाई का अंत नहीं , जिंदगी मरू बन जायेगी , स्वतंत्र नहीं
फूल मुरझा जायेंगे - इस पार भी , उस पार भी
महिला बनकर सोंचो जरा - महिला हीं खोती है अपना सर्वस्व
वह सुहाग हो , औलाद हो , भाई या पिता हो , हर हालत में लूट जाती है महिलायें
ममता की आँचल जब लहूलुहान होता है
तो पूछो उनकी आँखों की गर्म धारा से - उसने क्या खोया है ?
प्रसव की पीड़ा जिसने झेला , उसे कितनी पीड़ा झेलनी पड़ेगी और कब तक ?
कौन बतायेगा इसका जवाब ? वो नहीं जानती !
मगर इतना तो है कि - हिन्दुस्तान का हीं अंश है पाकिस्तान
सवाल हिन्दू मुस्लिम / सिख / इसाई होने का नहीं , सवाल है मिट्टी की खुशबू का
पूर्वजों को याद करके उनसे पूछा जाए - तो उनके सीने में भी धड़कता रहा है
हिन्दुस्तान का सुर / लय / ताल / गीत - संगीत रंग
गौर करने की बात है - एक माँ जुड़वा बच्चे को जन्म देती है , तो सकेंड का फर्क होता है
अब लड़ाई कैसी / किससे ? पीठ पर वार नहीं तलवार नहीं
सच्चाई को अपनाओ , गले लग जाओ , यहीं मकसद अपनाओ
देश को आगे बढाते हैं , विकासशील बनाते हैं
एक बार स्वार्थ से परे सोंचों , पीड़ा शांत होगी
फिर नहीं बेवस लाचार एक माँ होगी
अवनि का रूप - एक बेटी , बहन , पत्नी , माँ का है
नहीं चाहिए दोनों हाथो में अलगाव , गले लगाने में दोनों का साथ जरुरी है
मैंने तो दी कब से मंजूरी है , तुम्हारी सोंच में क्यूँ दूरी है ?
कब तक और कितना मैडल लेना होगा ? आँचल की जीत का
कभी हिन्दुस्तान में आकर , कभी पाकिस्तान में जाकर
अपनी आँचल से आँखों को पोछते हुए स्वीकार किया तगमा
दो भाई को आपस में सुनामी लाना है , गर तो !
हमें जन्म नहीं लेना , जन्म नहीं देना
अब नहीं झेलना है प्रसव की पीड़ा , न प्रसव का सुख न दर्द
क्यूंकि हर हाल में महिलाओं को हीं फुर्रकत का जख्म भोगना पड़ता है
निष्पंद क्लेवर बनकर जीना , चैत की तपती रेत पर
रेगिस्तान में नंगे पाँव चलने से भी ज्यादा , वेकल / बेहाल करती है
माँ जीतकर भी हार जाती है , माँ देवकी बनकर सोंचो जिसने जुदाई भोगा
माँ यशोदा बनकर तड़पो , जिसने जुदाई पीया
बिन पानी मच्छली की तड़प सी , तड़प रही महिला बेहाल है
बंद मुठ्ठी खाली - खाली , सर्वस्व पाकर भी बेवस बनी स्त्री आज भी कंगाल है
कविता :- आदित्या , एम० नूपुर की कलम से
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