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"क्लेश"
कोई तो बरसे रंग ऐसा , जो मेरा हो
खुशियों से सजा - धजा , जग मेरा हो
निफिक्र होकर रहे , उमंगो को भरकर
अपने बच्चों के संग , तरंगो में सोकर
नींद उड़ी है , चैन उड़ा है
जो कटा है , वृक्ष / जंगल मेरा
तन पे छाँव कहाँ से लाऊं
जो इंसान ने मेरा सुख है घेरा
क्या मिलेगा मुझे सता के
क्या करेंगे वे मुझे भगा के
इस जंगल पर अधिकार
सिर्फ मेरा है
सावन बरसा , भादो गरजा
पतझड़ ने अब ली अंगड़ाई
कैसे पा लू जो खोया है
कहाँ से लाऊं पल जो सोया है
दुःख भरा है इस दिल में
कैसे मै बतलाऊं
कौन सुनेगा किसे सुनाऊ
दिल की तड़प बयाँ कर पाऊं
ये जंगल मेरा था , ये जंगल मेरा है
कविता :- आदित्या , एम० नूपुर की कलम से
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