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"ओ साथी रे"
प्यार तो बहुत था दिल में लुटाने के लिए
पर ! आया हीं नहीं कोई पास पाने के लिए
किसको याद करूं , किससे फ़रियाद करूं
कहाँ पर जाकर जज्जबात अपनी बयां करूँ
हमसफ़र राह में मिला अपने ठिकाने के लिए
मैंने तो गले लगाया था समुन्द्र बहाने के लिए
उजरेगा चमन मेरा कहाँ पता था
छूट जाएगा साथ रास्ते में वह पल भयावह था
कातिल ने तो क़त्ल हीं कर डाला
न लहू निकला न दम , बेरहम मार डाला
जिश्म से जान निकल जाती तो अच्छा था
तुम्हारी याद न आती तो अच्छा था
जितना भुलाना चाहूँ तुम उतना याद आते हो
जब छूट गया हाथ रास्ते में फिर क्यूँ सताते हो ?
जिस मोड़ पर खड़े हैं , तुमने हीं तो छोड़ा है
शिकायत नहीं कोई तुमसे , कसूर मेरा है
अब कौन सा नजराना तुम्हें मै पेश करूँ
बंद मुठ्ठी खाली - खाली , अब क्या तुम्हें मै ट्रेस करूँ
तुमने खबर भी नहीं की , न सब्र हीं किया
कैसे ढुढूं मै ठिकाना , ठिकाना तुमने अँधेरे में गिरा दिया
अब तो दिल संभाले संभलता भी नहीं
बेवफाई पीकर मन पिघलता हीं नहीं
अपने जिश्म को पाषान बना डाला है मैंने
कतरा - कतरा तेज़ाब डालकर , दिल हीं जला डाला है मैंने
अब तो प्यार बचा हीं नहीं किसी परवाने के लिए
पर अफ़सोस भी नहीं मानती हूँ
शमां तो जलती हीं है
तमाम उम्र जल जाने के लिए ,जल जाने के लिए , जल जाने के लिए
गम न करो अवशेष बचेगा हीं नहीं
सागर में बहाने के लिए
पर अस्तित्व बरकरार रहेगा
नया इतिहास रचाने के लिए
प्यार तो बहुत था दिल में लुटाने के लिए
पर आया हीं नहीं कोई पास पाने के लिए , पाने के लिए , पाने के लिए
कविता :- आदित्या , एम० नूपुर की कलम से
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