Breaking News
"मंथन"
तुम्हें चाहा है मैंने इतना
सच मानों
जितना गहरा समुन्द्र है
इन्द्रधनुषी आसमान से भी ऊँचा मेरा प्यार है
शायद ! यकीन नहीं तुम्हें , पर एतवार करो
जैसे सूरज का उगना / अस्त होना
चाँद - सितारों का चमकना / सावन का बरसना / फूलों का खिलना
पतझड़ का आना सत्य है
मेरा प्यार उतना हीं सच्चा है
जीतनी झूठ जिंदगी है
मेरा नेह उतना हीं सधवा है
जितना सच दुनियां में सिर्फ मृत्यु है
और , और कितना यकीन दिलाएं हम तुम्हें
फिर भी यकीं न हो तो , एक बार कहो तो सही
तुम्हारे लिए हम अस्त हो जायेंगे
यहीं के यहीं , अभी के अभी , इसी वक्त
तुम्हें चाहा है मैंने इतना , हाँ इतना .........
कविता :- आदित्या , एम० नूपुर की कलम से
रिपोर्टर