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"सिर्फ तुम"
भावनाएं बदलने पड़े
जिंदगी मरू बनी
मान्यताओं पर प्रश्न चिन्ह लगा ?
जवाब बस इतना
तुम्हें पाना है पार होकर भी
सवालों का घेरा भारी पड़ा
तुम समन्दर , सावन तुम , प्यासा मन तड़प गया
तुम्हें पी नहीं सकते
कैसी मज़बूरी ये कैसा सफ़र है ?
जहाँ रौशनी नहीं नेह की
दीये बुझ गए बिन बाती , जाति की आड़ में
मै रिक्त हो गई
होठों पर शब्द नहीं भाव नहीं
सिर्फ इंतज़ार है आंसुओं में डूबा हुआ
हिलौरे ले रही आँखें तूफ़ान बना
समन्दर पिघल जाने दो , समन्दर पिघल जाने दो , समन्दर पिघल जाने दो
कविता :- आदित्या , एम० नूपुर की कलम से
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