Breaking News
"तपिश"
तुम्हारे शब्द मुझे तोड़ते हैं
टूटकर बिखर जाती है
"मै" बार - बार , फिर जोड़ते है
दर्द /क्लेश / पीड़ा , चाहत समेटे मन में
कभी तुम्हारे पास होती
तो , कभी दूर , बहुत दूर
शब्दों की थपेड़ो से जो मारा है मुझे
दर्द सा होता है कहीं
लेकिन फिर भी , हालात बिन तुम्हारे "शाम"
मुट्ठी भर धुप नहीं , न उम्मीद का चिराग बाकी है
अब तो निष्पंद क्लेवर की तरह जीना है
आमवस्या की चादर ओढ़े , तपिश की राख की ढेर पर
बेगर आह !
मै मजबूर या फिर हम !
शायद ........ !
कविता :- आदित्या , एम० नूपुर की कलम से
रिपोर्टर