Breaking News
"इंतजार"
एतवार टूटता रहा
हम जुड़ते गए खामोशियों के साथ
और
जीते रहे क्लेश को गले लगाए
आज भी तड़प जाती है जिंदगी , मौत के लिए
मिलता नहीं कहीं भी चिराग नेह का
जिसमे सेक सके हम मुट्ठी भर अपनी पीड़ा
ये सच है , रिश्ता नहीं कतरा भी
मगर टीसता है बार - बार , पारदर्शी पन्ने के नीचे
तुम अनभिज्ञ क्या जानों , जिसने देखी नहीं अंगारिणी
एक सपना बुना था राख की ढेर पर
वह भी सो गया किश्तो में
कविता : आदित्या , एम० नूपुर की कलम से
रिपोर्टर