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"उम्मीद पर टिका है शजर"
उम्मीद पर टिका है शजर , पल - पल बेहोश
पर एहसास मन कहता है - कुछ खो गया है दिल के करीब से
और मेरा विश्वास रुखसत हो गया जब्ज होकर
मन पागल / बेचैन है , तेरी सतरंगी जहाँ में
ऐसा क्या लूट गया मेरा , बिखर गया फिज़ा में
आज फिर मन मदहोश है ,लव सिले है लेकिन
इंतज़ार बेहोश चिंगारी रे , उठ रहा धुंआ - धुंआ आसमान में
काश छलक जाता ओस की बूंद बनकर
लेकिन आज भी तप - तप जम रहा सुबह - शाम मे
सितम पर सितम हर कोशिश नाकाम है
तन्हा जीने की हिम्मत निलाम है
अब जिंदगी मौत को दस्तक दे रही है
तुम्हारे सानिध्य की बाट जोह रही है
अब तुम्हारे बिना कहीं भी दिल लगता नहीं
पल ठहर सा गया है , रास्ते बन गए अंजान से
मेरी कल्पना .जहान दुनियां तड़प - सिसक रही है
सबेरा छीन गया है , हर जगह अँधेरा व जीवन बिरान है
तुम्हें गले से लगा लूँ ,उस पल की तलाश है
कैसे बताऊँ मेरी जिंदगी , बिरह में पतझड़ - रेगिस्तान है
शमा कैसे जीए ! जीने की चाहत नहीं जब
बिन परवाने ख़ुशी पीने की आदत नहीं अब
कैद मन सोंचता है , मेरा भी वहीं हाल है
तुम पानी , मै प्यासी मच्छली , मुझे मेरी सांसे लगती श्मशान है
तुम्हारे प्रीत छाँव बिन , मेरी खुशियाँ धधक रही है
सावन की घटा भी चैत सी लग रही है
मै आ जाऊं या फिर तुम आ जाओ
तरस रही नैना मिलन को , कैसे जताऊँ तुमसे कितना प्यार है ?
बस एक बार फिर से गले से लगा लो मुझे तुम
इंतज़ार में आँखें समुन्द्र बना , पिघलने को बेताब है
पिघलने को बेताब है , हाँ बेताब है , मन में उमड़ रहा सैलाब है
कविता :- आदित्या , एम० नूपुर की कलम से
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