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निधि ( बिल्ली ) और जय ( खरगोश ) दोनों बहुत ही अच्छे दोस्त हैं | जब दसवीं का फाइनल परीक्षा होने को था , तब अचानक निधि बीमार पड़ गई | यह देखकर जय की रूम पार्टनर ममता ( बकरी ) बहुत ही ज्यादा खुश हुई | उसके मन की सोच कि - आज तक मैं कभी भी फर्स्ट नहीं आ सकी , कारण निधि का हद से ज्यादा पढ़ाई में तेज होना था और वह हर साल मोनिटर की कुर्सी पर बैठ रोब गाठती है , हम सभी के साथ | उसके मन में एक जलन की प्रवृत्ति सालों से चल रही थी , जो आज उसकी बीमारी ने मन को ठंडक पहुंचाया था और इस बार जीत की माला पहनने की उत्सुक ममता , मन ही मन पुलकित हुए जा रही थी | निधि से वह इसलिए भी जलती थी कि - वह स्वयं जय को बेइंतहा प्यार करने लगी थी , यह जानते हुए भी कि जय और निधि की मंगनी बचपन में हीं दोनों के परिवार वालो ने स्वेच्छा से किया था | इसलिए इन दोनों की खानदानी दोस्ती , नगर में एक मिशाल के तौर पर भी जानी जाती है |
जब जय के पिता को पता चला कि निधि बीमार है , तो एक दिन वह जय को अपने कमरे में बुलाकर कहा - बेटा तुम तो जानते हो कि मैं निधि से बहुत प्यार करता हूं , वह मेरी बेटी है और इस घर की होने वाली बहू भी | मैं चाहता हूं कि तुम दोनों के अच्छे अंक आए , तो मैं दोनों को कॉलेज की पढ़ाई करने दिल्ली भेज दूं | लेकिन मेरे सोंच पर पानी फिर गया , निधि बीमार पड़ गई | डॉक्टर उसे बेड रेस्ट को कहा है और परीक्षा में बस 2 महीना ही बाकी है | निधि कैसे पास कर पाएगी ? समझ में नहीं आता ! पता नहीं किस की नजर मेरी बच्ची को लग गई ! पुनः रुंधी हुई आवाज में कहा - बेटा मैं चाहता हूं , क्यों न तुम निधि के यहां जाकर उसे पढ़ाओ | प्यार से उसे पढ़ाओगे , तो हो सकता है उसे सबकुछ याद रहे और फिर महीने भर में वह अच्छी भी तो हो जायेगी , तो उसे समझने में ज्यादा समय नहीं लगेगा | मै जानता हूँ कि इसमे तुम्हारा नुकसान होगा | लेकिन अपनों को जो लोग खुशियाँ देते है उसे भगवान हमेशा जीत का सेहरा पहनाते है |
मुस्कुराते हुए जय स्वीकृति से सर हिलाते हुए कहा - पापा आपने मेरे दिल की बात कह डाली | यह तो मैं कब से सोच रहा था , लेकिन आपकी इज्जत पर आंच ना आए , इसलिए मैं शून्य पड़ गया था और उमेश अंकल की छोटी लड़की ममता भी काफी कुछ गलत सोचती है , हम दोनों को लेकर | उसके कारण हीं तो निधि झूले से गिर पड़ी है और उसे चोट लग गया | बाद में पता चला कि - वह जानबूझकर झूले का नट खोलकर निधि को जिद्द करके उस पर बिठाया था | निधि के अक्सर फर्स्ट होने पर उसे जलन भी तो होता रहा है | वह चाहती है - इस बार बोर्ड की परीक्षा में निधि फेल हो जाए , ताकि वह उसे चिढ़ाए | यही सोंच कर मैं परेशान था , पापा अब देखना मैं कितनी मेहनत करता हूँ निधि पर |
रोज सुबह जय , निधि के घर पहुंचना शुरू कर दिया | देर रात तक घर वापस आता , खूब मन लगाकर दोनों तैयारी में लग गए | यह देखकर निधि की मां भी जय पर बहुत ज्यादा ध्यान देने लगी | समय पर दोनों को चाय , खाना खिलाती | टॉनिक - जूस वगैरह का भी अलग से व्यवस्था कर डाली थी कि थकान न हो |
अचानक एक दिन झूठी तसल्ली देने के मूड में ममता , निधि के घर पहुंचती है | वहां पहुंचते हीं जय को देख अवाक रह जाती है | दोनों को मजे से पढ़ाई करते देख उसे जलन महसूस होती है | गहरी चिंता में पड़ी , उसे अपने किए पर गुस्सा आता है , हमने क्यों नट खोला था झूले का ? क्यों ऐसी हरकत कर डाली थी ? अब तो पैर में मोच आने के कारण यह दोनों और भी ज्यादा करीब हो गए और निधि का पांव भी नहीं टूटा | अब क्या करूं ?उसे एक तरकीब सूझी ! वह रोज हीं निधि के घर उसकी सेवा के बहाने आने लगी , ताकि गप-शप करके पढ़ाई में बाधा उत्पन्न कर सके |
सप्ताह भर यहीं सिलसिला जारी रहा | जय को उसकी चालाकी समझते देर न लगी और वह उलटी चाल चल बैठा | तीन-चार दिन सुबह में जय निधि के घर नहीं आया | ममता इंतजार करती , बार-बार निधि से पूछती - जय क्यों नहीं आ रहा है ? सीधी-साधी निधि आसान सा जवाब दे डालती - परीक्षा है न सर पर , इसलिए मम्मी ने बोला है - अपने घर पर ही पढ़ने के लिए | ममता ने चालाकी से सीधा प्रश्न दाग दिया - तो फिर तुम्हारी पढ़ाई कैसे होगी ? तुम्हें जय ने कोई नोट्स नहीं दिया ! तब तक निधि हल्के मन से बोल पड़ती है - दिया है न | ममता अपने ललचती आंखों को शांत करने की कोशिश कर बोल पड़ती है - दिखाओ न | निधि के इशारों पर - उस टेबल पर होगा , जवाब पाकर नोट्स हाथ में उठाती हुई उससे सवाल पूछ बैठती है और लगभग सही जवाब पाकर ममता अंदर ही अंदर जल उठती है |
उस दिन तो वह अपने घर चली आती है | लेकिन निधि का समय बर्बाद करने और मात देने हेतु पीछे पड़ जाती है | दो-तीन दिन बाद वह निधि के घर आती है और बहाने से वह नोट्स चुरा लेती है | यह सोंच कर कि - जय तो अब आता नहीं और दूसरा नोट्स देखा नहीं | आधी तो साली ने याद कर लिया है और आधी को मै फाड़ फेंकती हूँ | देखती हूँ कैसे पास होती है ? उठती हुई ममता ने कहा - अच्छा निधि बहुत काम है मुझे , मै चलती हूँ तुम आराम करो और हो सके तो इस बार की परीक्षा छोड़ हीं दो ! क्या फायदा ? अगले साल परीक्षा देना , कौन उम्र बढ़ जाएगा |
निधि मुस्कुराती हुई - थैंक्स ममता , एक तुम ही तो मेरी अच्छी सहेली हो , जो मेरे बारे में अच्छा और उचित सोंचती है | वरना इतने दोस्तों में तो कोई ठीक से तबीयत पूछने भी नहीं आता , तुम बहुत अच्छी हो | अपनी तारीफ सुन , ममता फूली न समाई और आश्वस्त हो गई अपने चाल की जीत पर - आखिर बाजी मेरे ही हाथ लगी | फुदकती हुई अपने घर पहुंची और अपने लैपटॉप पर फिल्म लगाकर चाय पीती हुई खुशी से फूले नहीं समा रही थी | दिन बीतता गया और इधर चलाक जय , सुबह की जगह रात को निधि के घर आकर उसे तैयारी करवाना शुरू कर दिया | धीरे - धीरे निधि अच्छी होती चली गई और परीक्षा का दिन निर्धारित हो गया | दोनों ने परीक्षा दिए और उधर ममता ने भी परीक्षा दिया |
परीक्षा का परिणाम जब निकला , तो निधि और जय दोनों फर्स्ट डिवीजन से पास हो चुके थे | दोनों अपनी खुशी बांटने जब ममता के घर पहुंचे , तो यह देखकर अवाक रह गए कि - ममता फूट-फूट कर रो रही थी और उसकी मम्मी उसे तानों से सील रही थी , क्योंकि वह फेल हो गई थी | कहते हैं न - दूसरे को पीछे करने वाला व्यक्ति , स्वयं पीछे रह जाता है | ममता को अपने पास होने की चिंता कम थी , ज्यादा तो ध्यान वह निधि के फेल हो जाने पर लगाती रही |
कहते हैं न - बुरे कर्म का बुरा नतीजा मिलता है | आज यह साबित हो गया था , स्वयं ममता की नजर में | ममता की मां ने ममता को कान पकड़ कर शपथ खिलाई - आइंदा किसी का गलत और बुरा न करने हेतु और अपनी बेटी के आंसू को अपने आंचल से पोछती हुई , गले लगाकर स्नेह से बोल पड़ती है - क्या हुआ फेल कर गई तो ? अगले साल की तैयारी में लग जाओ | मैं भी तुम्हें मेडिकल में भेजने हेतु अभी से रुपए इकट्ठे करने में लग जाती हूं | फिर जय क्या ? उससे भी अच्छा लड़का तुम्हें मिलेगा |
माँ ने समझाते हुए कहा - देखो ममता , शादी वहीं करनी चाहिए , जो तुम्हें प्यार करें | यहां तो सिर्फ तुम हीं जय को चाहती रही , प्यार करती रही | यह तुम्हारा सिर्फ एक तरफा प्यार था बेटा | जय ने तो कभी तुझे चाहा ही नहीं , फिर तुम वहां कैसे खुश रह सकती हो और फिर इन दोनों की मंगनी भी बचपन में हीं हो चुकी है | किसी को अलग करना पाप है | हम ढूंढेंगे न अपनी ममता के लिए - डॉक्टर , इंजीनियर आईएस वर |
यह सुन ममता पुलकित होती हुई झूम उठती है और लैपटॉप से फिल्मों को डिलीट करने में लग जाती है | कहते हैं न- जब मन में लग्न और उम्मीद भर जाए , तो फिर कामयाबी कदम चूमती है | ममता के मन में अब एक हीं बात तरंगे लेती है - हम होंगे कामयाब , हम होंगे कामयाब , हम होंगे कामयाब एक दिन |
जय और निधि मुस्कुराते हुए ममता के घर से वगैर मिले वापस लौटते है और रास्ते भर उनके मन में यहीं बाते चलती है - सुबह का भुला गर शाम को वापस घर आ जाये तो उसे भुला नहीं कहते और मन हीं पुलकित होते है ममता के पुनः आगे बढ़ जाने से | क्यूंकि ममता के मन का मैल अब धुल चूका था |
हर इंसान के मन में दो विचार आते है - एक पोजेटिव और दूसरा निगेटिव | पोजेटिव पाने के लिए निगेटिव को धोना हीं पड़ता है और फिर दुनियां में कुछ भी पाना असंभव नहीं होता | पोजेटिव विचारधाराओं की उथल - पुथल के बीच दोनों घर पहुंचते है , तो घर की सजावट और जश्न देखकर अवाक रह जाते है | बहुत सारे लोग इनके स्वागत में फूलों की माला लिए खड़े हैं | कुछ क्षण बाद हीं ममता और उनकी माँ भी हाथ में बूके लिए आती दिखाई पड़ती है | यह सुखद क्षण निधि और जय के लिए बहुत बड़ी सम्पति थी | दोनों की आँखें ख़ुशी की सतरंगी रंगों में तैरता हुआ नजर आने लगा | यहीं पर तो इंसान की जीत है , जहाँ हारी हुई बाजी भी इंसान सरलता से जीत लेता है | ......... ( कहानी :- आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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