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मुझे आज भी याद है वह अंधेरी रात , बारिश की धीमी - धीमी बूंदे और घर के पीछे कदम के पेड़ की आवाज | आज भी सोचता हूं तो दिल काँप उठता है , बस जुबां पर एक ही बात आती है - भगवान न करे ये हादसा किसी और के साथ हो |
हुआ यूँ था कि - रात के करीब 10:00 बज रहे थे , खाना खाकर छत पर थोड़ा टहला और फिर अपने बेडरूम में खिड़की के पास लगे टेबल कुर्सी पर बैठकर "शैतानी भूतनी" की कहानी पढ़ने लगा | तभी पास के कमरे से माँ ने आवाज दी - बेटा सो जाओ , सुबह होकर केदार मामा के यहां जाना है | दरवाजे को खोलते हुए मैंने कहा था - मुझे याद है बस थोड़ी किताब पढ़कर सो जाऊँगा |
किताब के ऊपरी पन्नों पर बनी भूतनी की तस्वीरें , लंबी-लंबी बाल , बड़ी डरावनी दांत व भयावह आंखें देखकर , ऐसा जान पड़ता था जैसे वह खा जाने को तैयार हो | डर तो बहुत लगा , मगर हिम्मत जुटाकर पन्ने को पलटा - शैतान वन जहां सिर्फ भूत प्रेत चारों तरफ शमशान | जहाँ रात तो दूर की बात दिन में भी कोई जाने की हिम्मत न जुटा सके | जैसे ही शाम ढलती , मुर्दों के चीखने - चिल्लाने की आवाज आती |
पास के गांव में हीं 16 फरवरी के दिन शादी थी | बरात लड़की के दरवाजे पर पहुंच चुकी थी , तभी घर के अंदर से रोने और चिल्लाने की आवाज आने लगी | पता चला रेशमा घर से गायब थी वह सज - सवंर व दुल्हन बनकर अपने पुराने प्रेमी भूत के साथ भाग गई | चर्चा था कि - भूत यानी गगन 4 साल पहले रेशमा के साथ एक ही कॉलेज में पढ़ता था | धीरे-धीरे दोनों में प्यार हो गया और यह प्यार इतना गहरा था कि - दोनों एक दूसरे को जिंदगी मान चुके थे |
इन दोनों का प्यार देखकर अक्सर अमीत को जलन सी होती | जब भी गगन रेशमा के गोरे बाजू को स्पर्श करता , पता नहीं क्यों ? अमित का चेहरा आक्रोश से भर जाता | इस बात को गगन ने भी कई बार महसूस किया था | मगर गगन उस बात को नजरअंदाज कर , यह सोंचकर टाल देता कि कोई बात नहीं | मगर एक दिन वह बोल बैठा - अमित तू इतना गुस्सा क्यों होता है ? रेशमा तेरी भी तो भाभी होगी ! फिर तू जितना चाहे उससे मजाक करना |
अमित यह सुनकर गुस्से से भरकर चला गया | अमित जानता था कि - रेशमा गगन की है , फिर भी पता नहीं क्यों ? वह दोनों को जब भी साथ देखता जलकर राख हो जाता | कहीं यह प्यार तो नहीं ! यह पागलपन अमित को दीवाना सा बना दिया था | सारा दिन वह रेशमा के पास भटकता फिरता | कभी कॉलेज तो कभी उसके बंगले के इर्दगिर्द | अमित के लिए रेशमा को पाना उसका मकसद बन गया था |
11 फरवरी का दिन - गगन और रेशमा ने अमित को फोन करके नरेगा पार्क में बुलाया | अमित के पहुंचते ही गगन ने अपनी शादी का निमंत्रण पत्र अमित के हाथ में यह कहते हुए थमा दिया - कहा था न , कि रिश्ता ऊपर से बनकर आता है और कहता हुआ गगन , रेशमा की कलाई थामकर आगे बढ़ जाता है |
उस दिन सारी रात रेशमा की याद में अमित सो ना सका | उसके मन में तरह-तरह की बातें रेशमा को पाने के लिए आती रही , तभी उसके आंखों के सामने अंधेरा छा गया और अंधेरे से आवाज आयी - कायर बनकर क्यों बैठा है ? कुछ ही दिनों में तेरे आंखों के सामने से तेरा प्यार "रेशमा" को कोई ले जाएगा और तू कमजोर और अबल की तरह बैठा अपनी हथेली मलता रह जाएगा | क्योंकि तू डरता है गगन से , डरता है गगन के बल से और सबसे बड़ी बात की तू कायर है कायर |
इतना सुनते ही अमित अपने हाथ में लिए शीशे की ग्लास को दीवार पर लगे एलईडी पर फेंकता है और जोर से चिल्लाता हुआ बोलता है - हां मैं कायर हूं , कायर हूं मैं अपने प्यार के लिए , हां मैं डरता हूं और वह भी अपने प्यार को पाने के लिए | जब भी मेरे प्यार को कोई छूता है , तो मेरे दिल में खंजर सा चुभता है | मगर अब ऐसा नहीं होगा ! रेशमा की शादी 16 फरवरी को हीं होगी , मगर गगन से नहीं बल्कि मुझसे होगी , मुझसे |
इतना चिल्लाते हुए अमित , गगन को अपने घर रेशमा के लिए शॉपिंग के वास्ते बुलाता है | सुबह के करीब 10:00 बज रहे थे गगन को किचन में बुलाकर , अमित चाय पीने को देता है , जिसमें वह पहले से ही नशा मिला चूका था | चाय को पीते ही गगन जमीन पर गिर पड़ता है | तब बेहोश गगन को अमित चाकू से गोदकर मार डालता है और उसे बोरी में डालकर नदी में फेंक देता है |
3 बजते हीं गांव में चारों तरफ गगन की मौत की खबर फैल जाती है | गगन के कटे शव देखते ही गगन और रेशमा के घर वालों पर गाज गिर पड़ता है | एक तरफ शादी की तैयारी और दूसरी तरफ गगन का शव | मौका देखते ही अमित रेशमा के पिता के पास जाकर , सांत्वना देते हुए बोलता है - रोइए नहीं पापा , होनी को कौन टाल सकता है | आप घबराइए मत , मैं भी तो आपका बेटा जैसा ही हूं ! आप चिंता मत कीजिए , रेशमा से मै शादी करूंगा | इतना सुन रेशमा के पिता को थोड़ी राहत पहुंचती है और 16 फरवरी के दिन रेशमा से अमित की शादी तय कर दी जाती है |
14 फरवरी की रात अमित रेशमा को लेकर वैलेंटाइन डे का पार्टी मना रहा था | तभी पता नहीं क्यों ? रेशमा के पैर अपने आप छत की बालकनी के तरफ बढ़ने लगा | बालकनी पहुंचते हीं रेशमा को ऐसा लगा , जैसे मानो गगन उसके सीने से लिपटा हुआ हो | तभी हवा से आवाज आती है - हाँ रेशमा मैं तेरा गगन ही हूं | घबराओ मत और याद है न परसो 16 फरवरी है और परसो क्या है ? परसों हमारी शादी है , तुम दुल्हन बन कर मेरा इंतजार करना , मैं तुम्हें लेने अवश्य आऊंगा | इतना कहते ही गगन वहां से गायब हो जाता है |
दरवाजे पर पहुंचे बारातियों में गगन की चर्चा होनी शुरू हो गई थी | यह जरूर गगन का हीं काम है , वह भूत बनकर रेशमा को अपने साथ ले गया है | उधर रेशमा जैसे ही गगन को पकड़ना चाहती , वह गायब हो जाता है |
रेशमा छत पर बैठी जोर जोर से रो रही थी , तभी गगन पास आकर कहा - मत रो रेशमा , इस समस्या का एक समाधान है | तभी रेशमा व्याकुलता से बोल उठती है - क्या उपाय है ? जल्दी बताओ , मैं तुम्हें पाने के लिए कुछ भी कर सकती हूं | गगन रुआंसी आवाज में - इसके लिए तुम्हें मरना होगा और इस मृत्यु के पश्चात हम दोनों प्रेत रूप में मिलते रहेंगे | इतना सुनते हीं रेशमा बोल उठती है - बस इतनी छोटी सी बात और कहते हुए वह तीन मंजिला मकान से छलांग लगा देती है |
कहते हैं प्यार छीना नहीं जाता , बल्कि वह तो अपने आप मिल जाता है | एक तरफा प्यार हमेशा ही घातक साबित होता है | इसलिए जज्बात में आकर ऐसा कोई भी कदम नहीं उठाना चाहिए , जो हमारे लिए मुसीबत हो जाए | इस कहानी को पढ़कर , राज जैसे ही किताब पलटता है , तभी उसके कंधे पर एक काली बिल्ली छलांग लगा देती है जिससे राज का पूरा शरीर सुन्न पड़ जाता है | इस कहानी को पढ़कर राज ने स्वयं से वादा किया - वह कभी भी जज्बात में आकर ऐसा कोई काम नहीं करेगा , जो उसके लिए घातक साबित हो | ......... ( कहानी :- आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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