Breaking News
"विलाप हिंदी कविता का"
मै कविता हूँ , मुझे कविता हीं रहना है , मुझे कविता हीं रहने दे
मै गीत नहीं हूँ , मै गजल नहीं हूँ
मै धड़कते दिलों की आवाज हूँ
मुझमे साज मत डालो
मै आवाज हूँ , मुझे आवाज हीं रहने दो
मंच पर मुझे लाते हो
हिंदी साहित्य की बात सजाते हो
कभी - कभी मुझे अपने शब्दों का मेल समझ नहीं आता
तुम अश्लीलता में मुझे लिप्त करते हो , अर्थ मिल नहीं पाता
मुझे टुकड़ों में बाँट - बाँटकर करते हो मजबूर
कई - कई उदहारण सुना - सुनाकर पुनः करते हो प्रस्तुत
मै बहुत भिन्न हो गई हूँ , तुम्हारी बईमानी से खिन्न हो गई हूँ
मेरा नाम लेकर मुझे बदनाम मत करो
मै कविता हूँ , मुझे कविता रहना है , मुझे कविता हीं रहने दो
मुझे बेमोल सुरों में ढाल दिया , जैसे पैरों में है घुंघरू बाँध दिया
तुलसी दास जी ने लिखा था कभी -
ढोल , गंवार , शुद्र , पशुचारी , ये सब है तारण के अधिकारी
तुमने तब भी उन्हें चिन्हित कर डाला
चारी को नारी बोल - बोलकर , नारी की आत्मा को प्रताड़ित कर डाला
आज तुम फिर वहीं गलती दोहरा रहे हो
अश्लील , फुहर , जुगलबंदी बीच कविता बिठा रहे हो
मै कविता हूँ , पहले मुझे समझो
मुझे पढ़ो , महसूस करो , फिर प्रस्तुत करो
मेरे मन के टुकड़े मत करो , मै धार हूँ , मुझे बहने दो
कवीर दास , सुर दास , ग़ालिब , पन्त ने लिखा और लिखा सौ - सौ कलमों ने भी -
आज मुझे ऐसा महसूस हो रहा है
जैसे द्रोपदी की तरह मेरा भी चीर हरण हो रहा है
मै कविता हूँ , मुझे कविता रहना है , मुझे कविता हीं रहने दो
सुनों , सुनों तुम - कविता एक राधा है , कविता एक मीरा है
कविता कृष्ण की बांसुरी है , कविता सरस्वती की चाकरी है
कविता आम्रपाली नहीं , मै , कविता - माँ की लोरी हूँ
आत्मा में बसी ईश्वर की ज्योति हूँ
सागर से भी गहरा वर्णन है मेरा
आसमा से ऊँचा तन है मेरा
सूरज से भी ज्यादा चमक
और चंदा से भी ज्यादा ठंढक है मेरा
आदित्या , एम० नूपुर की कलम से
रिपोर्टर