Breaking News
आज परिवर्तनी एकादशी है | यह एकादशी भादो मास की एकादशी है , जिसे साल का सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण एकादशी हम मान सकते है | इस दिन को हम देव झुलनी एकादशी भी कहते है | देव झुलनी एकादशी में श्री कृष्ण की पूजा आराधना की जाती है |
आज के दिन सूर्य की पूजा करने के बाद , माँ यशोदा श्री कृष्ण को सूर्य देव का दर्शन करवाकर नए वस्त्र पहनाती है और उन्हें शुद्ध करके धार्मिक कार्यों में शामिल किया जाता है |
श्री कृष्ण जयंती यानि की जन्माष्टमी महापर्व मनाने के सोलहवां दिन माता यशोदा जलवा पूजन यानि की कुआं की पूजन करती है |
आज भादो माह के शुक्लपक्ष की एकादशी है , जिसे डोल ग्यारस एकादशी , परिवर्तनी एकादशी , जल झुलनी एकादशी आदि नाम से जानते है | आज के दिन घर - घर में जलवा पूजन होता है | रात में जागरण कार्यक्रम देखने का माहौल इस कदर बना रहता है , जिसमे चारो तरफ हर्षोल्लास व जश्न करने जैसा माहौल महापर्व जैसा प्रतीत होता है | उनकी झांकियां भी निकाली जाती है |
आज हीं के दिन भगवान विष्णु सोते हुए में करवट बदलते है |
जो लोग एकादशी वर्त करते है या फिर रूचि रखते है | उन्हें अच्छी तरह यह बात पता है कि - देवसैनी एकादशी में भगवान विष्णु चार महीने के लिए चीर निंद्रा में चले जाते है | कार्तिक मास कहे या चतुर्ग मास , इस बीच कोई शुभ कार्य हिन्दू धर्म को मानने वाले लोग नहीं करते | परन्तु इस बीच एक ऐसा समय आता है , जब भगवान विष्णु सोते हुए करवट बदलते है और वह दिन है भादो मास के शुक्लपक्ष का परिवर्तनी एकादशी , जो आज है 17 सितम्बर को |
परिवर्तनी एकादशी तो हर साल आता है | परन्तु आज जिस एकादशी की बात हम कर रहे हैं , उसे सोने पर सुहागा एकादशी का नाम हम दे सकते है | यह इसलिए की आज 17 सितम्बर है और 17 सितम्बर एक निर्धारित तिथि है , जिस दिन हम भगवान विश्वकर्मा की जयंती मनाते है |आज कोई भी ऐसा घर नहीं होगा , जहाँ पकवान या मिठाइयाँ नहीं बनी या मंगाई गई होगी |
इक्ताफाक है कि यह दोनों महापर्व एक हीं दिन रौशनी बिखेरने धरती पर मौजूद है | इस एकादशी को करने से मनुष्य को अश्वमेघ यज्ञ की प्राप्ति होती है | क्यूंकि इसकी कथा निराली है , जहाँ एक भक्त और भगवान के बीच मोहब्बत की परिकाष्ठा को देखा गया है |
भगवान विष्णु का 52 रूप आज के दिन हीं उजागर हुआ था | राजा बली की पूजा अर्चना से विष्णु भगवान प्रसन्न हुए और राजा बलि ने उनका एक रूप दान में मांग लिया था | भगवान , भक्त से प्रसन्न होकर राजा बलि को अपनी एक प्रतिमा सौंप दी थी | इसी के कारण इसे 52 ग्यारस एकादशी भी कहा जाता है |
इस बात की चर्चा पांडूनंदन श्री अर्जुन ने श्री कृष्ण से पूछा था कि - प्रभु हमें भादो माह की शुक्लपक्ष की एकादशी का रहस्य और विधान बताइये | साथ हीं इसे करने से किस फल की प्राप्ति होती है ? तो श्री कृष्ण ने बड़े हीं प्यार से कहा था कि - हे पार्थ , भादो माह के एकादशी को जयंती एकादशी भी कहते है | इस एकादशी की कथा सुनने मात्र से हीं मनुष्य के पापों का अंत हो जाता है | मनुष्य में पूण्य आत्मा हो या पाप आत्मा , दोनों को हीं स्वर्ग का अधिकार प्राप्त हो जाता है |
आज भगवान विष्णु की 52 पूजा करने से ब्रह्मा , विष्णु और महेश तीनों की पूजा का फल मिल जाता है , उस भक्त के लिए संसार में कुछ भी पाना शेष नहीं रह जाता | इतना सुन अर्जुन ने पुनः एक प्रश्न पूछा - आपने बलि को क्यूँ बाँधा ? वह लीला क्या है , मुझे विस्तार में बताइये ?
श्री कृष्ण ने कहा - त्रेतायुग में बलि नाम का एक असुर हुआ करता था | वह बहुत हीं यज्ञ - तप किया करता था , साथ हीं अत्यंत दानी प्रवृति व ब्राहमणों की सेवा करने वाला मेरा भक्त था | वह अपने कर्म से देवेन्द्र के स्थान पर पहुँच गया | इस बात को देवराज इन्द्र और अन्य देवतागण सहन न कर सके और भगवान श्री हरी के पास जाकर प्रार्थना करने लगे | तो अंत में मैंने 52 रूप धारण करके तेजस्वी ब्राहमण बालक के रूप में राजा बली पर विजयी प्राप्त की थी |
52 रूप धारण कर भगवान ने राजा बलि से याचना कि और कहा - हे राजन , तुम तीन पग भूमि मुझे दान में दे दो | इससे तुम्हें तीन लोक के दान का फल प्राप्त होगा | राजा बलि तो दयालु हीं थे | उनके लिए तीन पग भूमि देना कोई बड़ी बात नहीं थी | उन्होंने वचन दिया और कहा कि - हम आपको तीन पग भूमि दान में देते है |
वचन लेने के बाद श्री कृष्ण ने अपना आकार बढ़ाया और भूलोक में अपना पग , भूवनलोक में जंघा , स्वर्गलोक में कमर , मेहलोक में पेट , जनलोक में ह्रदय , तपलोक में कंठ और सत्यलोक में मुख रखकर अपने शीर्ष को उपर उठा लिया | यह देख सूर्य , नक्षत्र , इन्द्र देवता मेरी स्तुति करने लगे | फिर श्री कृष्ण ने बलि से पूछा - हे बलि तीसरा पग मै कहाँ रखूं ? इसे सुन बलि अपना सर झुकाकर मेरे आगे कर दिया | तब मैंने अपना तीसरा पग उसके सर पर रख दिया और अपने भक्त को पताल लोक में पहुंचा दिया |
फिर बली ने मुझसे विनती कि , तब मैंने उनसे कहा कि - मै तुम्हारे पास हीं रहूँगा और तब से एक प्रतिमा राजा बलि के पास रहती है और भादो मास के परिवर्तनी एकादशी के दिन बलि को भगवान से आशीर्वाद मिलता है | साथ हीं दूसरी प्रतिमा क्षीर सागर में शेषनाग के शरीर पर शयन करती रहती है | आज के हीं दिन भगवान शयन करते हुए करवट बदलते है |
त्रिलोकी नाथ भगवान विष्णु की पूजा सभी को करनी चाहिए | जिसमे दही , चावल और चांदी का दान करना बहुत हीं पूण्य का काम माना जाता है | रात्रि जागरण और उपवास करने वाले को स्वर्गलोक में स्थान मिलता है | इस कथा को सुनने व सुनाने से अश्वमेघ यज्ञ की प्राप्ति भी होती है |
आज सुबह 9:36 बजे से यह आरम्भ हुआ है , जो 18 सितम्बर की सुबह 8 बजे तक रहने के बाद द्वादशी में परिवर्तित हो जायेगी | इसलिए 18 सितम्बर की सुबह 6:54 बजे तक सभी को पारण कर लेना उचित होगा |
चलते - चलते एक बार और हम आपको याद दिला दे कि- भगवान विष्णु के साथ माँ लक्ष्मी का निवास कहा गया है | क्यूंकि माँ लक्ष्मी भगवान विष्णु की पत्नी है और श्री कृष्ण की पत्नी भी माँ लक्ष्मी हीं है | भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण दोनों एक हीं रूप है | इनकी पूजा करना संसार के सभी देवी - देवताओं की पूजा करने के बराबर है | क्यूंकि माँ लक्ष्मी के बिना किसी का बेरा पार नहीं लगता और माँ लक्ष्मी को अगर प्रसन्न करना हो तो , परिवर्तनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु और श्री कृष्ण की पूजन जरुर करे | ....... ( अध्यात्म जानकारी / फीचर :- आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
रिपोर्टर