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"किस्मत की चाबी"
दर्द जब से हद से ज्यादा गुजर जाए , तो उसकी दवा क्या है ?
बेवफा को इस दुनियां में पहचान लें , वो वफ़ा क्या है ?
कौन है जो चलाता है संसार की बागडोर ?
किस्मत की चाबी है उनके हाथ , चलता नहीं किसी का जोर
काश ! कि उनका पता पास होता
मुलाक़ात का हर रास्ता साफ़ होता
हम भी रूबरू होते उनसे
तो मझदार में फंसी जीवन की नैया पार होता
काश ! एक बार उनसे दीदार होता , मेरा मन उनके पास होता
हम उतने ज्ञानी नहीं , परन्तु मानते है - आत्मा में परमात्मा का निवास है , जानते है
फिर भी कर बैठे है बड़ी भूल
आखिर क्यूँ होता है इंसान से चूक ?
उनकी हीं बनाई दुनियां में हम बिचरते है
फूलों की तरह मुरझाते , खिलते है
कुछ अच्छा करे , तो लोग वाहवाही करते है
मंजिल जो छुट गई , तो आहें भरते है !
कुछ नाम का भी जीवन में पड़ता है असर
ये सच है कि इसी धरती पर सुख - दुःख से कटता है सफ़र
अँधेरे को पार करने की बस देर है
फिर आपके जीवन में हर दिन सतरंगी सवेर है
सावन बरसता है जीवन में , पतझड़ भी है डगर में
पाना किसे है यह हमपर निर्भर है , इतिहास दुनियां का दर्पण है
सोंच अच्छी हो तो भाग्य बदलते देर नहीं लगता
कौन कहता है - किस्मत की रेखा आपके पास नहीं होता ?
सिर्फ जीत दिखला देने की हिम्मत , खुद में जुटा लीजिये
फिर पतझड़ में भी फूल खिलेंगे , अजमा लीजिये
हर रस्मों को तोड़कर फांद लीजिये अंधेरे की दीवार
चाहे क्यूँ न रुकना पड़े आपको , जब मंजिल हो सरहद पार |
कविता :- आदित्या , एम० नूपुर की कलम से
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