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तस्वीर तुम्हारी देखकर हम हैरान हुए
कैसे बताऊँ तुम्हें हम कितना परेशान हुए
तुम वही थे , तुम्हारी सोंच वही थी
चाहते , तमन्ना , ख्वाहिशें वही थी
सिर्फ उम्र ढल सा गया है तुम्हारा , कैसे कहूँ
वक्त बदल सा गया है हमारा और सबकुछ वही है
अब गालों पर तुम्हारी वह लालिमा नहीं रही
बालो में वह कालिमा नहीं रही
होठों पर गीत , गजल , कवितायेँ टिकी है फिर भी
मगर ! चाल में वो रुमानियाँ नहीं रही
सिर्फ उम्र ढल सा गया है तुम्हारा , कैसे कहूँ
वक्त बदल सा गया है हमारा और सबकुछ वहीं है
आँखें तुम्हारी ढूंढती है वहीं पुरानी ख्वाहिशें , महसूस किया !
जहाँ तुम नंगे पाँव समुन्द्र के किनारे थे दौड़ते , याद किया
आज सड़कों पर चलने की चाह नहीं रही
सीढ़ियों पर पाँव रखने की वो भार नहीं रही
सिर्फ उम्र ढल सा गया है तुम्हारा , कैसे कहूँ
वक्त बदल सा गया है हमारा और सबकुछ वहीं है
हम आज भी उसी मोड़ पर है खड़े
तुम कल भी थे अड़े , हो आज भी अड़े
आज फिर ! तुम्हारी हर पहल पर मुस्कुराते हुए हम बेसुध दौड़ पड़े हैं
तुम्हारी नयन ने जब - जब गिराई अस्क , हम रो पड़े है
सिर्फ उम्र ढल सा गया है तुम्हारा , कैसे कहूँ
वक्त बदल सा गया है हमारा और सबकुछ वहीं है
हमारी सोंच वहीं है , तुम आकार दो
हमारी आरजू वहीं है , तुम प्रकार दो
तुम्हे मिल जाए तुम्हारी हर ख्वाहिशें
हम आज भी अपनी चाहतो में यहीं जरे हैं
सिर्फ उम्र ढल सा गया है तुम्हारा , कैसे कहूँ
वक्त बदल सा गया है हमारा और सबकुछ वहीं है
तुम्हें कैसे बताऊँ , मेरे दिल में तुम्हारे लिए कितना दर्द भरे है
हम कल भी अकेले थे , हम आज भी अकेले खड़े है
अब ! चाहत में मेरी भी आँखें धुंधली पर गई है
बेवफाई का चादर सिलते - सिलते वफ़ा पिघल रही है
सिर्फ उम्र ढल सा गया है तुम्हारा , कैसे कहूँ
वक्त बदल सा गया है हमारा और सबकुछ वहीं है
आओ मिलकर एक हो जाए हम
धरती हीं नहीं आसमान पर भी इन्द्रधनुषी फूल खिलाये हम
जब हम साथ हो तो , रेगिस्तान की फ़िक्र किसे होगा
आओ एक गुलाबी भोर जिंदगी में सजाये हम
सिर्फ उम्र ढल सा गया है तुम्हारा , कैसे कहूँ
वक्त बदल सा गया है हमारा और सबकुछ वहीं है
और सबकुछ वहीं है , सबकुछ वहीं है और सबकुछ ...... !
( कविता :- आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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