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"तुम्हारी प्यास है"
तुम बुत हो हम जानते है
फिर भी तुम्हें हीं खुदा मानते है
मानते है क्यूंकि तुमने हीं किया हसरते पूरी
एक दिन तो मिट के हीं रहेगी , मेरी तुम्हारी यह दूरी
क्यूंकि मुझे भी बुत बनना है
जीवन भर तुम्हारे हीं संग रहना है
यह निर्णय मेरा है
तृप्त होती हूँ तुम्हीं से करके बात और कौन सुनेगा तपती बिरह की रात
तुमसे जो कहना है हमने कह डाले
कब चुप रहना है मुझे ए रब जाने
कविता :- आदित्या , एम० नूपुर की कलम से
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