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राहुल पत्थर की टीला पर बैठा अपनी नजर से आकाश पर छाए उस बादल को देख रहा था और मन ही मन यह सोंच रहा था कि - कितना बेदर्दी है यह बादल , जिसने हंसते हुए आकाश को ढक अपनी सुंदरता को प्रकाशमयी बनाकर बिखेर रहा है | यही सब बातें राहुल के मन में हिलौरे लेती हुई उथल - पुथल मचाती है , तभी राहुल की नजर दूर बैठी उस लड़की पर पड़ती है , जो एकाग्रता से उस आसमान को देख रही होती है जैसे वह मन ही मन आकाश से कुछ बातें भी कर रही हो |
राहुल चाहकर भी अपनी नजर उस खूबसूरत लड़की पर से नहीं हटा पाता और ऐसा लगता है - जैसे कि उससे कोई पुराना रिश्ता हो ! तभी राहुल के कानों में पहाड़ की चोटियों से टकराकर एक अधूरा वाक्य सुनाई पड़ता है - राहुल जल्दी चलो बारिश ...... और इसी अधूरे वाक्य को पूरा करने में राहुल मग्न हो जाता है | तभी अचानक जोरों की बारिश शुरू हो जाती है और राहुल उस अधूरे वाक्य को छोड़कर भागते हुए पहाड़ की एक गुफा में छुप जाता है | फिर अचानक उसके मन में उस लड़की का ख्याल आता है | वह सोंचता है - पता नहीं इस मूसलाधार बारिश में वह लड़की कहां होगी ? तभी उसे अपनी नजर के सामने वह लड़की खड़ी मिलती है | राहुल चाहकर भी अपनी जुबान खोल नहीं पाता और वह लड़की वहीं पर खड़ी होकर बारिश में भीगती हुई असमंजस में एकटक राहुल को निहारती हुई स्वीकृति की अपेक्षा में वाट जोहती है | राहुल उसकी आँखों को पढ़ते हुए भी उसे गुफा के अन्दर बुलाने की हिम्मत नहीं जुटा पाता | फिर भी अंतरमन की आवाज को प्रकृति का आदेश मानकर अपनी कांपती हुई जुबां से बोल पड़ता है - प्लीज अन्दर आ जाइए न , आप भींग रही है |
राहुल की बातों का लड़की पर कोई असर नहीं पड़ता | राहुल को ऐसा लगता है - मानो वह अभी भी कुछ सवाल आकाश से पूछ रही हो | फिर भी राहुल दूबारा बोल पड़ता है - देखिए आप पूरी तरह से भीग चुकी हैं , प्लीज अन्दर आ जाइए न ! जबतक की बारिश ख़त्म नहीं होती | देखिये न ! कितनी जोड़ो की बारिश है और बिजली भी कड़क रही है सो अलग | ऐसे में तो आप बहुत परेशान हो जायेंगी , तबियत बिगड़ गई तो कितना महंगा पड़ेगा ! अब राहुल उसके कन्धों पर हल्के हाथ स्पर्श करते हुए बोल उठता है - आप क्या सोंच रही है प्लीज अन्दर छुप जाइए |
राहुल के स्पर्श से लड़की का तन्द्राभंग होता है | एक पल के लिए लड़की राहुल को निहारती है , फिर कुछ सोंचती हुई गुफा के अन्दर आ जाती है | राहुल एक ऊँची जगह देखकर बोल पड़ता है - प्लीज यहाँ बैठिये | लड़की सकुचाकर सोंचती हुई खड़ी रह जाती है | राहुल भांप जाता है कि गुफा के अंदर मै हूँ इसलिए लड़की बैठना नहीं चाहती और बोल पड़ता है - आप बैठिये , मेरे अन्दर रहने से अगर आपको परेशानी है तो मै बाहर चला जाता हूँ | राहुल जैसे हीं मुड़ता है बाहर जाने के लिए तभी लड़की राहुल का हाथ पकड़ लेती है | राहुल लड़की का स्पर्श पाकर अपना नियंत्रण खो देता , मानो उसे सच में बिजली का झटका लगा हो |
शायद यह सच हीं था ! राहुल के जीवन में किसी लड़की का यह पहला स्पर्श था , जिसे पाकर वो विचलित होते हुए भावविहल हो जाता है | इसलिए कि इस स्पर्श में राहुल को प्यार की एक अनुभूति , एक सुखद एहसास सा होता है और लगता है कि जैसे कई जन्मों का रिश्ता इस स्पर्श से जुड़ा है | वह जैसे हीं पीछे मुड़ता है कि उसका दाहिना पाँव फिसल जाता है और वह फिसलते हुए लड़की के कंधे से जा लगता है | स्वयं को झटके में हटाते हुए राहुल सॉरी बोलते हुए अलग हटता है , पर वह शर्मिंदा है | इस बात को लड़की भांप जाती है और बोल पड़ती है - कोई बात नहीं , यहीं पर मेरे साथ बैठ जाइए | लड़की की बातों को सुनकर राहुल बैठ जाता है और बातों हीं बातों में लड़की राहुल के कंधे पर सर रखकर कब सो जाती है , पता हीं नहीं चलता | राहुल भी थका हुआ अपने सर को गुफा की आड़ लिए आँखे बंद कर लेता है |
आँखे जब खुलती है तो चारो तरफ - चिड़ियों की चहचहाने की मीठी आवाज कानों में हलचल मचाती है | एहसास होता है कि सुबह हो चुकी है और चारो तरफ हरियाली भी दिखाई पड़ने लग जाती है | धीरे - धीरे प्रकाश की कुछ किरणें छनकर लड़की के गेंसुओं को सहलाता हुआ जान पड़ता है | कुछ पल के लिए राहुल को जलन सा होता है और तभी लड़की की गुलाब सी पंखुड़ी होठों पर पानी की शबनमी बूंदें दिखाई पड़ती है | राहुल एकटक लड़की को देखता रह जाता है , लेकिन लड़की की खूबसूरती की गिनती कम नहीं होती | राहुल चाहता है कि वक्त यहीं ठहर सा जाये और जिंदगी का हर पल इतना हीं सुखद अनुभूति लिए हुए गुजरता रहे | तभी लड़की मस्त अंगडाई लेती हुई अपनी आँखे खोलती है और अपना सर राहुल के कंधे पर पाकर झट हटाती है और सॉरी बोलती है | राहुल हल्का मुस्कुराता हुआ बोल पड़ता है - दोस्ती में सॉरी नहीं मेम साहब , सारी रात मेरे कंधे को तकिया समझकर सोया है आपने , जुर्माना तो भरना पड़ेगा | अब गुफा के अन्दर पूरी तरह धुप जाग चूका होता है | लड़की बाल झटकाती , मुस्कुराती हुई गुफा से बाहर निकलती है | उसे मुस्कुराता हुआ देख राहुल भी हल्का मुस्कुराता हुआ बाहर निकल आता है |
दोनों के बाहर आते हीं अचानक सूर्य का प्रकाश विलुप्त हो जाता है , जैसे कि धुप शर्मिंदा हो और चोरी पकड़ी गई हो गुफा के अन्दर अपने गर्माहट से दोनों के मुखड़े पर किये गए स्पर्श से | परन्तु सूर्य विलुप्त कहाँ हुआ था ? उसकी थोड़ी - थोड़ी झलक बादलों की आड़ से छनकर अभी भी बाहर आ रही थी | ये तो प्रकृति का नजारा था जिससे आभाष हो रहा था कि धुप जोड़ी की आहट पाकर छुप गया हो |
लेकिन धुप छुपा कहाँ था ? वह तो अन्दर हीं अन्दर विलाप कर रहा था - विस्तृत हो जाने के लिए | उसे तो बेदर्दी बादल का करिश्मा ने ढक दिया था और लुकाछिपी खेलते हुए धुप को अपनी गतिशीलता का परिचय दे रहा था | आसमान के नीचे धुप की रौशनी को छुपाने की मस्ती देख राहुल बोल पड़ता है - देखो सीमा वो बादल कितना सुन्दर दिख रहा है | सीमा राहुल की बातों को सुन बोल पड़ती है - नहीं राहुल , ये तो वो बेदर्दी बादल है , जो अपनी सुन्दरता बिखेरने के लिए , सूर्य की किरणों की सुन्दरता को ढक दिया है |
कभी - कभी हम समझ नहीं पाते प्रकृति के रंग - ढंग , रूप - स्वभाव - निखार , गुण या फिर प्रेम के ढाई आखर ..... और अपने हीं आप अनुमान लगाते चले जाते हैं - प्रकृति के विचित्र रंग को देखकर |
कभी साफ़ आसमान पर सतरंगी रंग छाया बादल इंसान को शीतलता देती है तो फिर वहीं दूसरी तरफ बादलों का आसमान को ढक देना उन्हें अधुरा लगता है , ऐसे क्यूँ ? अधेड़बुन में पड़ा अनभिज्ञ इंसान उलझता चला जाता है , जितना कि वह स्वयं को सुलझाने की कोशिश करता है | बादल तो कुछ पल के लिए सूर्य की गर्मी को सोख धरती को राहत पहुंचाने में मदद करता है , जिससे हमारे जीवन में बहार आती है शायद ...... ! और लव बोल उठता है - पंख होती तो उड़ जाती मै रसिया वो बालमा , तुझे ...... ! ( कहानी :- आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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