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आराम कुर्सी पर बैठे राहुल की नजर शो केस में सजे उस मैडल के तरफ जाती है , जो उसे कॉलेज के दिनों में मिला था | राहुल की नजरे धुंधली होती हुई उस स्टेज को याद करती है , जब कॉलेज में 15 अगस्त का प्रोग्राम हुआ था | वैसे तो पढ़ाई के सिलसिले में पूरे कॉलेज में वह फेमस था , मगर उस दिन का कार्यक्रम उसे और भी फेमस कर दिया | परीक्षा में भी वह , कॉलेज में प्रथम आया | कॉलेज मनेजमेंट ने राहुल की बड़ी सी तस्वीर कॉलेज के मुख्य दरवाजे व परिसर में लगवाया था | देखकर ऐसा लगता जैसे मानो वह साक्षात खड़ा हो | पोस्टर को लगे अभी 2 दिन भी नहीं हुए थे , कि पोस्टर का आधा हिस्सा लड़कियों के होठों की लिपस्टिक की छाप से भर गया था | खैर , यह तो शुक्र था कि - लड़कियां फोटो के आधे भाग तक ही पहुंच पाती थी , वरना न जाने उसके चेहरे का क्या डिजाइन बन जाता |
खैर आज कॉलेज का आखिरी दिन था , यानी विदाई समारोह | इस समारोह ने सभी की आंखों में आंसू ला दिए थे | समारोह खत्म होने के बाद प्रिंसपल साहब ने उपस्थित लोगों को म्यूजिक हॉल में बुलाया | हॉल में पहुँचने के बाद , यहाँ का दृश्य एक सरप्राइज जैसा था , जिसे देखकर सभी की आँखें फटी रह गई | इतना अद्दभुत व शानदार डेकोरेशन उनलोगों ने कभी नहीं देखा था और स्टेज के दोनों कार्नर पर दो बड़ा LED लगाया गया था , जिसमें राहुल का कार्यक्रम चल रहा था | राहुल को यह देखकर बहुत खुशी हुई , मगर आश्चर्य तब हुआ ! जब स्टेज के ऊपर खूबसूरत मनमोहक अपनी तरफ खींच लेने वाली लड़की की तस्वीर लगी थी | वह लड़की कौन थी ? वह ठीक से पहचान नहीं पाया | पूछताछ के क्रम में पता चला कि - यह फर्स्ट ईयर की लड़की है जिसने इस कॉलेज में अभी-अभी दाखिला लिया है | उसे देख , राहुल के सर से पसीना छूटने लगा | यह क्या ? उसका साथ तो रेशमा दिया करती है | मगर आज रेशमा का क्या हाल होगा ? उसके दिल पर क्या गुजरेगी ? जब पता चलेगा कि - उसका को आर्टिस्ट रेशमा नहीं बल्कि कोई और है |
राहुल घबराकर दरवाजे से बाहर निकल गया , तभी माइक से आवाज आने लगी - यह आवाज प्रिंसिपल साहब की थी | वह दौड़ता हुआ हॉल के अंदर प्रवेश किया और कोने में एक खाली कुर्सी पर जाकर बैठ गया | प्रिंसपल साहब बोल रहे थे - बच्चों , तुम लोगों के साथ जिंदगी का यह भी महत्वपूर्ण 5 साल कैसे गुजर गया , पता ही नहीं चला ? इस 5 सालों में मैंने , तुम लोगों से जो प्यार पाया है , शायद उतना किसी से नहीं मिला | अचानक आकर मिलना और फिर मिलकर बिछड़ जाना , ये तो संसार का नियम है | मैं हर साल यह कार्यक्रम करता हूं | हर बार मैं अपने बच्चों से अपनी गलतियों की माफी मांग लेता हूं , मगर फर्क सिर्फ इतना है कि , हर साल तुम्हारी जगह कोई और होता है और इसी तरह युवा अवस्था से वृद्धावस्था में मै कैसे पहुंच गया पता हीं नहीं चला | समय के साथ साथ इंसान भी बदल जाता है | आश्चर्य की बात यह है कि - अपने कॉलेज की रेशमा , जो हमेशा राहुल की को - आर्टिस्ट रही है , आज वहीं रेशमा इस नाटक की निर्देशन करती हुई नजर आएगी और इस स्टेज के ऊपर आप जो तस्वीर को देख रहे हैं - यह अपनी पहचान की मोहताज नहीं है | पहचान और शोहरत तो आज उनकी कदम चूम रही है | इनका सुशोभित चेहरा तेजस्वी दिमाग जो इस बार मैट्रिक बोर्ड परीक्षा में बिहार राज्य में नंबर वन स्थान पर मोहर लगाकर अपनी शिक्षा की वीरता का परिचय दिया है | वहीं आकाशवाणी पर भी इनकी कई कविताएं प्रसारित हो चुकी है | मैं अपने आप को बड़ा ही भाग्यशाली समझता हूं कि - ऐसे विद्यार्थी भी हमारे कॉलेज में है , जिससे मेरे व मेरे कॉलेज का नाम प्रकाशवान हो रहा है | यह रौशनी फैलाने वाली लड़की कोई और नहीं , बल्कि मेरी बड़ी ही प्यारी , सुशील व आज्ञाकारी छात्रा अपूर्वा है | मैं इन्हें स्टेज पर बुलाने से पहले नाटक के डायरेक्टर रेशमा को स्टेज पर बुलाना चाहूंगा | वह स्टेज पर आए और अपनी जुबान से कुछ शब्द प्रकट करें |
स्टेज पर सीढ़ी चढ़ती हुई भारतीय संस्कृति की खुबसूरत पोशाक में लिपटी हुई एक सौम्य व्यक्तित्व की धनी लड़की ( रेशमा ) स्टेज पर लगे माइक तक पहुंचती है | माइक को अपने हाथों में जकड़कर पकड़ती हुई बोलती है - नमस्कार दोस्तों , मैं रेशमा भटनागर , आज के नाटक की लेखिका और निर्देशिका | यह कहानी कोई काल्पनिक नहीं , यह कहानी कोई नाटक नहीं , यह कहानी है एक सच्ची घटना पर आधारित | जिंदगी परिवर्तन का दूसरा नाम है | देखा जाए तो कल तक मैं आप लोगों के बीच एक कलाकार की भूमिका अदा करती रही | मगर आज निर्देशिका के रूप में आपके सामने खड़ी हूँ | यह कहानी एक टूटता हुआ प्यार का है , यह कहानी एक बिछड़ी हुई जिंदगी की है , इतना ही नहीं यह कहानी दो आत्माओं के मिलन का भी है | शायद ! सच हीं कहा गया है कि - जिंदगी के मायने और मोल तब समझ में आता है , जब उसके सामने जिंदगी का आखिरी दौर ( मौत ) खड़ा हो | जिंदगी का अंतिम एक क्षण , स्वयं और दुनियां को एक बार फिर याद दिला जाता है कि - खाली हाथ आए थे और खाली हाथ हीं जाना है |
रेशमा ने , नम आँखों से कहानी का संक्षिप्त सार सुनाते हुए , दीर्घा में बैठे हुए लोगों को पूरी तरह बांध लिया था | रेशमा ने इस कहानी के पात्र का परिचय कराते हुए कहा - अपूर्वा का होने वाला पति राहुल उससे बेइंतहा प्यार करता है और शायद वह इस बात से अनजान है कि - उसकी प्रेमिका का एक और चाहने वाला है , वह प्यार करने वाला कोई और नहीं बल्कि एक यमराज है | जो अनजाने हीं अपूर्वा की जिंदगी में प्रगट हो गया और अपने प्यार का शब्द जाम पीलाते हुए राहुल से अपूर्वा को खींचता हुआ नजर आने वाला है | इस नाटक के माध्यम से हम सब देखेंगे कि - आखिर इस कहानी में आगे होता क्या है ?
चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा है , तभी दूर किनारे से लाल रोशनी के साथ अपूर्वा का स्टेज पर आगमन |
अपूर्वा जोर - जोर से चिल्लाती हुई - हे ईश्वर , हे सदाशिव महेश , मेरी जिंदगी को इतना बेरंग क्यों बना रहे हो ? तुम मुझे क्यों परेशान कर रहे हो ? हमारी यह जिंदगी मौत से भी बदतर बन चुकी है , आखिर क्यों प्रभु , क्यों ? कहते कहते अपूर्वा रो पड़ती है |
तभी सामने से यमराज आकर - अपूर्वा तुम रो रही हो ! देखो , देखो मेरी तरफ , मैं तुम्हें पाने के लिए स्वयं भगवान शंकर से भी लड़ कर आया हूं | मैंने छोड़ दिया है वह एश्वर्य / आराम , वह सारी शानो शौकत | सच कहूं अपूर्वा - जब तुम्हें भगवान ब्रह्मा इस धरती पर भेज रहे थे , तब से लेकर आज तक मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं | एक - एक पल गुजारा है मैंने तुम्हारी फुरकत में तड़पते हुए | लेकिन तुम खुश होने के बजाय रोए जा रही हो | तुम्हारा खूबसूरत सा मुखड़ा / झील सी गहरी आँखें और रेशमी बालों से लहराता हुआ सावन , मुझे प्यार के कई मायने सिखला रहा है |
अपूर्वा , यह सभी जानते है कि - यमराज का काम धरती से इंसानों को भगवान के पास पहुंचाने का होता है | मगर अब मुझे तुम्हारी जुदाई बेकल व बेहाल करती हुई विचलित कर जाती है और मन तुम्हें मांगने और तुम्हारा सामिप्य पाने को मजबूर हुआ जाता है | सच कहता हूं - अब तुम्हारे बिना एक पल भी रहा नहीं जाता | उठो अपूर्वा , उठो और आकर मेरे गले से लग जाओ , जिसका मुझे सदियों से इंतजार है | अपूर्व आओ देखो , देखो मुझे , मैं सावन के होते हुए भी पतझड़ सा रेगिस्तान बना हूं | मै शून्य हूँ , तुम पास आकर मुझे समंदर बना दो | बिन पानी मच्छली सी तड़प , तड़पा रही है मेरे बेचैन मन को |
दोनों हाथ आगे बढाते हुए यमराज के कदम अपूर्वा के पास बढ़ने लग जाते है , तभी कुर्सी से उठता हुआ राहुल तेज गति से दौड़ता हुआ अपूर्वा को गले लगाते हुए बोल पड़ता है - यह क्या कह रहे है यमराज ? अपूर्वा मेरी और सिर्फ मेरी है , ये किसी और की नहीं हो सकती और यह क्या पागलपन ? कि स्वर्ग से आप धरती पर एक नया नाटक करने पहुंच गये |
हे ब्रह्मा , हे महादेव , ये तेरा कैसा इन्साफ है ? ये तेरी कैसी लीला है कि आज एक तेरा हीं दूत , मेरी जान को अपने साथ ले जाना चाह रहा है , एक अपनी अलग दुनियां बनाने , एक अलग संसार बसाने | प्यार में भूखा यह तेरा शिकारी अपनी हवस को मिटाने मेरे हीं नजर के सामने से मुझसे मेरी जान को छिनकर लिए जा रहा है |
इन्साफ करना होगा तुम्हें , मेरे भगवान , इन्साफ करना होगा | इस डूबती नैया को भंवर से बचाना होगा | .... शेष फिर अगले अंक में ...... ( कहानी :- आदित्या , एम० नूपुर )
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